झारखंड में जन्म लेनेवाले बच्चे पड़ोसी राज्यों के बच्चों से अधिक स्वस्थ होते हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड में ऐसे मात्र लगभग सात फीसद नवजात ही होते हैं, जिनका वजन जन्म के समय निर्धारित मानक अर्थात ढाई किलो से कम होता है। झारखंड के पड़ोसी राज्यों में बिहार ही इस मामले में झारखंड से कुछ अच्छी स्थिति में है, जबकि अन्य पड़ोसी राज्य झारखंड से काफी पीछे हैं। हालांकि राज्य सरकार तथा स्वास्थ्य से जुड़ी तमाम संस्थाओं और लोगों को आत्ममुग्धता से बचने की जरूरत है। भले ही झारखंड में जन्म लेनेवाले बच्चों में महज 7.4 फीसद बच्चे ही कम वजन के होते हैं। लेकिन इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि अभी भी नेशनल हेल्थ पालिसी तथा सस्टनेवल डवलपमेंट गोल में निर्धारित लक्ष्यों से झारखंड काफी पीछे है। कम वजन के जन्म लेनेवाले बच्चों की न्यूनतम संख्या वाले राज्यों में झारखंड सातवें स्थान पर है। लेकिन हमें उन राज्यों से सीख लेने की जरूरत है, जो इस स्वास्थ्य सूचकांक में झारखंड से बेहतर स्थिति में हैं।

राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास झारखंड को विकसित राज्यों की श्रेणी में खड़ा करने की बात कई मौके पर कह चुके हैं। यह तभी संभव है जब शिक्षा और स्वास्थ्य के विभिन्न सूचकांकों में हम विकसित राज्यों के समकक्ष खड़ा हो सकें। नवजातों की मौत की ही बात करें तो झारखंड में एक हजार जन्म पर 23 बच्चों की मौत 28 दिनों के भीतर हो जाती है। इसमें भी झारखंड अपने पड़ोसी राज्यों से बेहतर स्थिति में जरूर है। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि केंद्र सरकार ने यह दर 2025 तक प्रति हजार जन्म पर सोलह लाने का लक्ष्य रखा है। वहीं, सस्टनेबल डवलपमेंट गोल में वर्ष 2030 तक इस दर को घटाकर प्रति हजार जन्म पर बारह करना है। इसमें भी उन राज्यों से सीख लेने की जरूरत जो पहले ही इस लक्ष्य को प्राप्त कर चुके हैं। केरल, पंजाब, तमिलनाडु एवं महाराष्ट्र ने केंद्र के लक्ष्य को पहले ही हासिल कर लिया है। केरल ने तो सस्टनेवल डवलपमेंट गोल का भी लक्ष्य हासिल कर लिया है। राज्य सरकार को भी समय पर इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए न केवल स्वास्थ्य संरचनाएं सुदृढ़ करनी होगी, बल्कि सरकारी स्तर पर गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सुविधाएं बहाल करनी होगी। झारखंड में बाल विवाह की दर भी सबसे अधिक है। इसमें भी व्यापक बदलाव की जरूरत है।

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हाइलाइटर :

भले ही झारखंड में जन्म लेनेवाले बच्चों में महज 7.4 फीसद ही कम वजन के होते हैं लेकिन अभी भी नेशनल हेल्थ पालिसी के लक्ष्यों से झारखंड काफी पीछे है।

[ स्थानीय संपादकीय: झारखंड ]