जम्मू-कश्मीर विधानसभा भंग करने के राज्यपाल के फैसले के साथ वहां जोड़-तोड़ की सरकार बनने की संभावना खत्म जरूर हो गई, लेकिन यह भी तय है कि इस फैसले को चुनौती दी जाएगी। कहना कठिन है कि न्यायपालिका के समक्ष ऐसी दलीलें कितना टिक पाएंगी कि सरकार बनने की कोई सूरत नजर न आने के कारण विधानसभा भंग करने के अलावा और कोई उपाय नहीं रह गया था, क्योंकि यह स्पष्ट ही है कि एक-दूसरे की धुर विरोधी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी एवं नेशनल कांफ्रेंस के साथ कांग्रेस का गठजोड़ तेजी के साथ आकार ले रहा था। ये तीनों दल मिलकर सरकार गठन का दावा पेश करने की तैयारी में इसीलिए जुटे थे, क्योंकि सज्जाद लोन के नेतृत्व में भाजपा के समर्थन वाली सरकार बनने की सुगबुगाहट भी तेज हो गई थी।

राज्यपाल के फैसले के बाद फिलहाल किसी भी गठजोड़ की सरकार नहीं बनने जा रही। अब वहां नए सिरे से चुनाव होना या किसी गठजोड़ की सरकार बनना इस पर निर्भर करेगा कि विधानसभा भंग करने के फैसले को चुनौती देने की स्थिति में अदालत क्या फैसला करती है? भविष्य में जो भी हो, इसमें दो राय नहीं कि पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस का एक साथ आना हैरान करने वाला घटनाक्रम रहा। इन दोनों दलों के नेता भले ही अपनी एकजुटता को लेकर सपा-बसपा के संभावित मेल को एक उदाहरण की तरह पेश कर रहे हों, लेकिन यह काफी कुछ वैसा ही था जैसे कल को तमिलनाडु में द्रमुक और अन्नाद्रमुक एक हो जाएं, क्योंकि पीडीपी तो नेशनल कांफ्रेंस से ही निकली पार्टी है। आम तौर पर जब ऐसी अवसरवादिता देखने को मिलती है तो उसे इस जुमले से ढकने की कोशिश की जाती है कि राजनीति में न तो कोई स्थायी मित्र होता है और न ही शत्रु, लेकिन इससे मौकापरस्ती छिपती नहीं।

पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के नेता कितना ही यह कहें कि वे कश्मीर के हित के लिए दलगत हितों से परे हटकर एक साथ आने को तैयार थे, लेकिन सच यही है कि इस एका का मकसद जनता को बरगलाकर अपना उल्लू सीधा करना था। यह भी साफ है कि इस एका का मूल कारण जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 35-ए के पक्ष में मोर्चेबंदी करना था। इसे संभावित गठजोड़ के भावी मुख्यमंत्री माने जा रहे अल्ताफ बुखारी ने खुद यह कहकर साबित किया कि उनका एका केवल 35-ए के संरक्षण के लिए हो रहा है। यह अनुच्छेद राज्य के स्थायी नागरिकों को परिभाषित करने के साथ उनके अधिकार भी तय करता है। इसके कारण ही धारा 370 अस्थायी होते हुए भी स्थायी रूप में कायम है।

यह हैरानी के साथ चिंता की भी बात है कि कश्मीर में अलगाव की मानसिकता को बल देने वाले अनुच्छेद 35-ए पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का जैसा विरोध घाटी के अलगाववादी कर रहे वैसा ही पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस भी कर रही है। इसी विरोध को दर्शाने के लिए इन दोनों दलों ने निकाय चुनावों का बहिष्कार किया। 35-ए पर अलगाववादियों और पीडीपी एवं नेशनल कांफ्रेंस के सुर एक होना यही बताता है कि यह अनुच्छेद किस तरह कश्मीर समस्या की जड़ बना हुआ है।