पंजाब में अफसरशाही इतनी लापरवाह हो गई है कि मुख्यमंत्री व डीजीपी के आदेशों को भी ताक पर रख दिया जा रहा है। ऐसा तब है जब सरकार की साख दांव पर लगी हुई है। मुख्यमंत्री ने बीते माह अवैध खनन रोकने के लिए अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए थे। इसके बाद डीजीपी ने भी पुलिस अधिकारियों को कड़ी कार्रवाई करने को कहा था। हैरानीजनक है कि पुलिस व प्रशासन के अधिकारियों ने इन आदेशों पर भी गंभीरता नहीं दिखाई और प्रदेश में अवैध खनन धड़ल्ले से होता रहा। मंगलवार को मुख्यमंत्री जब हेलीकॉप्टर से चंडीगढ़ से जालंधर जा रहे थे तो सतलुज दरिया पर अवैध खनन होते देखा। उन्होंने नवांशहर व लुधियाना के अधिकारियों को कार्रवाई के निर्देश दिए। इसके बाद प्रशासन हरकत में आया और आनन-फानन में कई जेसीबी, क्रेन व टिप्पर जब्त कर लिए। अवैध खनन का मुद्दा पिछली अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार के समय से ही गरमाया हुआ है।

विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने वादा किया था कि सत्ता में आने पर अवैध खनन पर पूरी तरह रोक लगा दी जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बीते माह कैबिनेट बैठक में भी यह मुद्दा उठा था। अवैध खनन में कांग्रेसी विधायकों का भी नाम आने पर मुख्यमंत्री ने खुफिया विभाग व माइनिंग विभाग से एक रिपोर्ट तैयार करवाई जिसमें कई विधायकों के इस गोरखधंधे में संलिप्त होने का पता चला था। मंगलवार को बेशक अवैध खनन के मामले में ताबड़तोड़ कार्रवाई की गई लेकिन यह देखा जाना जरूरी है कि मुख्यमंत्री व डीजीपी के निर्देश के बाद भी अधिकारी कार्रवाई क्यों नहीं कर रहे थे। लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के साथ ही इस गोरखधंधे में लिप्त विधायकों को भी नहीं बख्शा जाना चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय: पंजाब ]