मंदी की चर्चा और चिंता के बीच वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आम जनता के साथ ही कारोबार जगत को जो भरोसा दिलाया उसका महत्व तभी है जब जमीन पर हालात बदलते हुए दिखेंगे। यह अच्छा हुआ कि वित्त मंत्री ने यह समझा कि मंदी के माहौल को दूर करने के लिए केवल रिजर्व बैंक के भरोसे रहना ठीक नहीं।

उन्होंने न केवल घरेलू और विदेशी निवेशकों पर बढ़े सरचार्ज को वापस लेने की घोषणा की, बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि अब कारपोरेट सामाजिक दायित्व यानी सीएसआर उल्लंघन के मामलों को आपराधिक नहीं माना जाएगा।

ये घोषणाएं यही बताती हैं कि सरकार ने बजट में की गई भूल को सुधारना जरूरी समझा। मोदी सरकार को भविष्य में ऐसी भूलों से बचना चाहिए, क्योंकि उनसे नकारात्मक माहौल का निर्माण होता है और यह किसी से छिपा नहीं कि अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाए रखने में सकारात्मक माहौल की एक बड़ी भूमिका होती है।

उम्मीद की जानी चाहिए कि वित्त मंत्री ने संकटग्रस्त एमएसएमई को राहत देने के उपायों के साथ यह जो स्पष्ट किया कि अब 30 से 60 दिन के भीतर जीएसटी रिफंड मिलेगा और बकाया कर्ज के मामले जल्द सुलझाए जाएंगे उससे कारोबार जगत उत्साहित होगा। उसे होना भी चाहिए और यह भी समझना चाहिए कि राहत पैकेज समस्या का सही समाधान नहीं।

ऑटो सेक्टर की ओर से राहत-रियायत की मांग के जवाब में सरकारी विभागों द्वारा नए वाहनों की खरीदारी को सुनिश्चित करने और मार्च 2020 तक खरीदी गई बीएस-4 मानक की गाड़ियों को मान्य करने के कदम इस सेक्टर की समस्या का समाधान करने वाले साबित होने चाहिए। एनबीएफसी और बैंकों को लिक्विडिटी की किल्लत से बचाने के उपायों की घोषणा करते हुए वित्त मंत्री ने यह संकेत दिया कि आने वाले दिनों में कुछ और कदम उठाए जा सकते हैं।

ये संभावित कदम जल्द उठाए जाएं तो बेहतर, क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था की सुस्ती को लेकर जो नकारात्मक माहौल बन रहा है उसे रोकना वित्त मंत्रालय की पहली प्राथमिकता बनना चाहिए। ध्यान रहे कि प्रतिकूल माहौल को अनुकूल रूप देना खासा मुश्किल भी होता है और उसमें समय भी लगता है। 

नि:संदेह वित्त मंत्री का यह कहना सही है कि बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों में मंदी के हालात और साथ ही उनके बीच व्यापार को लेकर टकराव का असर भारत पर भी हो रहा है, लेकिन इस सबके बीच वांछित सुधारों को तेजी से आगे बढ़ाना भी जरूरी है। इससे ही यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि अर्थव्यवस्था की वैश्विक स्थिति का विपरीत असर कम से कम हो। ऐसा होने पर ही भारत सबसे तेज रफ्तार वाली अर्थव्यवस्था बने रह सकता है।