राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग लोगों को झोलाछाप डाक्टरों के चंगुल से बचाने के लिए सभी चिकित्सकों का पंजीकरण करने और उन्हें विशिष्ट पहचान संख्या प्रदान करने की जो योजना बना रहा है उससे समस्या का समाधान होने में संदेह है। एक तो यह स्पष्ट नहीं कि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग की इस पहल से झोलाछाप डाक्टरों पर लगाम कैसे लगेगी और दूसरे इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अतीत में केंद्र सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों की ओर से ऐसे डाक्टरों पर नियंत्रण पाने के जो जतन किए गए वे कारगर साबित नहीं हुए। झोलाछाप डाक्टर पहले की तरह सक्रिय हैं। वे न केवल ग्रामीण और अर्धशहरी इलाकों, बल्कि शहरी क्षेत्रों में भी दिखाई देते हैं।

किसी के लिए भी यह समझना कठिन है, पर कोई रोक क्यों नहीं लग पा रही है। जब कहीं उनके खिलाफ कोई अभियान छिड़ता है तो उसका प्रभाव कुछ ही समय तक दिखाई देता है। अभियान खत्म होते ही अकुशल और अप्रशिक्षित डाक्टर अपनी गतिविधि में संलग्न हो जाते हैं। इसका कारण केवल यही है कि उन पर प्रभावी नियंत्रण की कोई व्यवस्था नहीं, बल्कि यह भी है कि निर्धन आबादी के एक तबके के पास उनकी सेवाएं लेने के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं। कई बार निर्धन व्यक्ति झोलाछाप डाक्टर के पास इसलिए भी जाता है, क्योंकि सरकारी स्वास्थ्य केंद्र उसकी पहुंच से बाहर होता है और निजी चिकित्सकों की महंगी फीस देना उसके लिए संभव नहीं होता।

स्पष्ट है कि उन कारणों की तह तक जाने की जरूरत है, जिनके चलते झोलाछाप डाक्टर फल-फूल रहे हैं और लोगों का उपचार करने के नाम पर उनके स्वास्थ्य और जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं। प्राय: उनका उपचार लोगों के लिए घातक साबित होता है, क्योंकि वे कई बार आपरेशन तक कर देते हैं। इससे इन्कार नहीं कि समय के साथ सरकारी स्वास्थ्य ढांचे का ग्रामीण क्षेत्रों में विस्तार हो रहा है, लेकिन इस दिशा में अभी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।

ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अवश्य खुल रहे हैं, लेकिन यह देखा गया है कि वहां सरकारी चिकित्सक मुश्किल से ही उपलब्ध होते हैं। समस्या केवल ग्रामीण क्षेत्रों में ही डाक्टरों की कमी की नहीं है। अपने देश में आबादी के अनुपात में कहीं कम संख्या में डाक्टर उपलब्ध हैं। एक अनुमान के अनुसार देश में लगभग पांच लाख डाक्टरों की कमी है।

यह ठीक है कि पिछले कुछ समय में और विशेष रूप से मोदी सरकार के कार्यकाल में मेडिकल कालेज तेजी से खुले हैं। इसके चलते डाक्टरों की उपलब्धता बढ़ी है, लेकिन यह अभी भी विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से बहुत पीछे है। यदि केंद्र और राज्य सरकारें झोलाछाप डाक्टरों की सक्रियता को समाप्त करना चाहती हैं तो उन्हें सरकारी स्वास्थ्य ढांचे को सुदृढ़ करने और उसे आम लोगों के लिए सहज सुलभ कराने पर विशेष ध्यान देना होगा।