आखिरकार उत्तर प्रदेश पुलिस के विशेष जांच दल ने पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री चिन्मयानंद से लंबी पूछताछ की। उन पर दुष्कर्म का आरोप उनके ही प्रबंधन वाले कॉलेज की एक छात्रा ने लगाया है। इस छात्रा का यह भी आरोप है कि चिन्मयानंद ने उसके साथ अन्य छात्राओं की भी जिंदगी बर्बाद की है। कायदे से यह सनसनीखेज आरोप सार्वजनिक होते ही स्थानीय पुलिस को चिन्मयानंद के खिलाफ जांच-पड़ताल करनी चाहिए थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। यह अच्छा नहीं हुआ कि इस मामले में कार्रवाई तब हुई जब सुप्रीम कोर्ट ने छात्रा की शिकायत का संज्ञान लिया। उसने ही उत्तर प्रदेश पुलिस को मामले की छानबीन करने के लिए विशेष जांच दल गठित करने के निर्देश दिए।

क्या इस तरह के मामलों में पुलिस अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह तभी करेगी जब न्यायपालिका उनका संज्ञान लेगी? यह वह सवाल है जिसका जवाब उत्तर प्रदेश पुलिस को देना चाहिए। नि:संदेह चिन्मयानंद प्रभावी व्यक्ति हैैं, लेकिन क्या इसके आधार पर वह पुलिस की कार्रवाई से बचे रहेंगे या फिर उनके खिलाफ मुश्किल से कार्रवाई शुरू हो सकेगी? फिलहाल किसी के लिए कहना कठिन है कि उन पर लगे आरोपों की सच्चाई क्या है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि उन पर पहले भी दुष्कर्म के आरोप लग चुके हैैं। हालांकि ताजा मामले में चिन्मयानंद के खिलाफ आए वीडियो को उनके वकील ने फर्जी बताया है, लेकिन अगर ऐसा नहीं है तो वह उनकी छवि को तार-तार करने वाला है।

विशेष जांच दल के लिए यह आवश्यक है कि वह चिन्मयानंद के खिलाफ आए वीडियो के साथ-साथ उस मामले की भी जांच करे जिसमें उनसे कथित तौर पर फिरौती मांगी गई है। इससे भी ज्यादा जरूरी यह है कि जांच-पड़ताल तेजी के साथ इस तरह हो कि यथाशीघ्र दूध का दूध और पानी का पानी हो सके। नि:संदेह यह एकलौता ऐसा मामला नहीं जिसमें स्थानीय पुलिस समय रहते सही तरह कार्रवाई करती नहीं दिखी। इसके पहले उन्नाव दुष्कर्म मामला इसीलिए सीबीआइ के पास गया, क्योंकि पीड़ित परिवार पुलिस के रवैये से संतुष्ट नहीं था।

कानून के शासन के लिए यह ठीक नहीं कि प्रभावशाली लोगों के खिलाफ जांच करते समय पुलिस किसी तरह के दबाव में दिखे। दुर्भाग्य से एक अर्से से यही देखने को मिल रहा है। नेताओं और धर्मगुरुओं के मामले में ऐसा कुछ ज्यादा ही देखने को मिलता है। जब ऐसा होता है तो आम जनता के बीच यही संदेश जाता है कि रसूख वालों से त्रस्त लोगों के लिए न्याय पाना अभी भी मुश्किल बना हुआ है। नीति-नियंता यह ध्यान रखें तो बेहतर कि ऐसे संदेश कानून के शासन को नीचा दिखाते हैैं।