भले ही चंद्रयान-2 अभियान का विक्रम नामक लैंडर चंद्रमा की दुर्गम मानी जाने वाली दक्षिणी ध्रुव की सतह से चंद कदम पहले ही ठिठक गया हो, लेकिन यह देखना एक दुर्लभ क्षण है कि इसरो के वैज्ञानिकों के साथ देश के आम और खास लोग यह मानकर चल रहे हैं कि अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ और कैसी भी चुनौती आए उससे पार पा लिया जाएगा। इससे बेहतर और कुछ नहीं कि देश सारी दुनिया को समवेत स्वर में यह संदेश दे रहा है कि हम उपलब्धियों पर गर्व करने के साथ ही बाधाओं का डटकर मुकाबला करना भी जानते हैं।

यही भावना तो कामयाबी का मंत्र है और इसे प्रधानमंत्री ने अपने इन शब्दों से बखूबी बयान भी किया कि चांद पर पहुंचने का हमारा सपना पूरा होगा और इसरो के वैज्ञानिक न तो रुकने वाले हैं और न ही थकने वाले। अगर प्रधानमंत्री ने आत्मविश्वास के साथ यह कहा कि हम चांद पर उतरकर रहेंगे तो यह एक संकल्प का उद्घोष है। इस संकल्प के पूरा होने के प्रति इसलिए सुनिश्चित हुआ जा सकता है, क्योंकि हमारे वैज्ञानिक अपनी अप्रतिम मेधा से दुनिया को पहले ही चमत्कृत कर चुके हैं। आखिर कौन भूल सकता है पहले ही प्रयास में अर्जित की गई मंगल यान की सफलता को या फिर एक बार में सौ अधिक उपग्रह भेजने के करिश्मे को?

चूंकि चंद्रयान-2 अभियान का अॅार्बिटर न केवल पूरी तरह सुरक्षित है, बल्कि सही तरह काम भी कर रहा है इसलिए वह ऐसी जानकारियां उपलब्ध करा सकता है जिससे चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग में मिली नाकामी से उपजी निराशा दूर हो सकती है। इस नाकामी के सिलसिले में यह तथ्य ध्यान में रखा जाना जरूरी है कि इसरो ने लैंडिंग के लिए चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव का चयन करके जानबूझकर एक कठिन लक्ष्य रखा था। यह इसलिए किया गया, क्योंकि इसरो का उद्देश्य केवल चांद पर पहुंचना नहीं, बल्कि उसके उन रहस्यों से दुनिया को परिचित कराना था जो अभी तक अबुझे हैं।

इससे इन्कार नहीं कि चंद्रयान अभियान के तहत सब कुछ मन मुताबिक न होने से एक मायूसी छाई, लेकिन देश में यह भाव साझा रूप में जगना नए और बदलते भारत की निशानी है कि यह एक ऐसी क्षणिक बाधा है जो उस सपने को साकार होने से नहीं रोक सकती जो इसरो के साथ सारे देश ने देखा। यह भाव कायम रहना चाहिए, क्योंकि इसी के जरिये देश अपनी तमाम चुनौतियों का सामना करने में सक्षम होगा। ध्यान रहे कि कठिन से कठिन चुनौतियां तब कहीं अधिक आसान हो जाती हैं जब उन्हें परास्त करने की भावना प्रबल हो जाती है।