प्रदेश में पारा शिक्षक बार-बार आंदोलन करते हैं और इससे सबसे बड़ा नुकसान बच्चों की पढ़ाई का होता है। पूरे राज्य में कहा जाए तो शिक्षा की मुख्य धुरी में संविदा पर बहाल किए गए पारा शिक्षक ही हैं, स्थायी रूप से बहाल शिक्षकों की संख्या इनकी तुलना में काफी सीमित है। इसलिए अगर पारा शिक्षक स्कूल में नहीं रहते हैं तो बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह ठप हो जाती है। साथ ही मिड डे मील समेत अन्य शैक्षणिक गतिविधियां ठप हो जाती हैं। इस बार पारा शिक्षकों का आंदोलन कम बच्चों वाले स्कूलों को पास के स्कूल में मर्ज करने के विरोध में और समान काम के बदले समान वेतन की मांग को लेकर है। हजारों पारा शिक्षक पूरे प्रदेश भर से सैकड़ों किमी की पैदल यात्र कर रांची पहुंचे हैं। पारा शिक्षक यहां मुख्यमंत्री आवास के समक्ष 30 अप्रैल तक धरने पर बैठेंगे। इस आंदोलन के पक्ष-विपक्ष में सभी के अपने-अपने तर्क व पक्ष हैं लेकिन सबसे बड़ा नुकसान उन बच्चों का होना है जिनकी पढ़ाई इन्हीं के बूते हो पाती है। पारा शिक्षकों के आंदोलन को कई संगठनों और राजनीतिक दलों का समर्थन है। इनका कहना है कि पारा शिक्षकों के बूते ही राज्य की प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था चल रही है लेकिन इस अनुरूप उन्हें मानदेय नहीं मिलता। समान काम के बदले समान मानदेय तथा नियमित मानदेय भुगतान की मांग को लेकर पूर्व में कई बार आंदोलन कर चुके पारा शिक्षकों ने इस बार आरपार की लड़ाई की चेतावनी दी है।

बिहार और दूसरे राज्यों में भी पारा शिक्षकों की बहाली झारखंड की ही तरह की गई है। यह तो नौकरी की शर्त ही रही होगी कि पारा शिक्षक अनुबंध पर रहेंगे और उन्हें मानदेय मिलेगा। फिर यह बार-बार का आंदोलन पारा शिक्षक क्यों कर रहे हैं? वहीं सरकार को भी यह सोचना होगा कि कम छात्रों वाले स्कूलों को पास के स्कूल में मर्ज करने का उसका फैसला क्या सही है? इससे तो बच्चों की स्कूल से दूरी और बढ़ जाएगी। पहले ही बच्चे स्कूल नहीं जाना चाहते, प्रदेश के स्कूलों में बच्चों का ड्राप आउट काफी ज्यादा है। इस फैसले से बच्चों के स्कूल छोड़ने की समस्या और बढ़ जाने का अंदेशा है। वहीं सरकार को पारा शिक्षकों को लेकर भी ठोस कदम उठाना होगा। उनकी जायज मांगों को मानना होगा ताकि बार-बार के आंदोलन से बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ न हो।

[ स्थानीय संपादकीय: झारखंड ]