अलगाववादियों द्वारा आए दिन कश्मीर में बंद का आह्वान करना चिंतनीय है। इससे न सिर्फ सामान्य जनजीवन प्रभावित हो रहा है बल्कि कानून व्यवस्था भी बिगड़ने की आशंका बनी रहती है। हड़ताल के दौरान शैक्षिक संस्थान भी बंद हो रहे हैं। यह बात किसी से नहीं छुपी है कि कश्मीर में हर वर्ष अलगाववादियों के आह्वान पर कई दिनों तक शैक्षिक संस्थान बंद रहते हैं। इससे विद्यार्थियों की पढ़ाई प्रभावित होती है। विगत वर्ष भी कश्मीर में स्कूल बंद होने के बाद परीक्षाओं को लेकर विद्यार्थियों ने कई दिनों तक प्रदर्शन किए थे। इसके बाद परीक्षा में ओपन च्वाइस दी गई थी। बेशक विद्यार्थी इससे अगली कक्षा में पढ़ाई करने के योग्य हो गए, लेकिन प्रतिस्पर्धा के इस युग में सिर्फ परीक्षा पास करना ही पर्याप्त नहीं है। विद्यार्थियों को अपने विषय के बारे में विस्तारपूर्वक ज्ञान होना जरूरी है। विडंबना यह है कि अलगाववादी विद्यार्थियों की इस समस्या को समझते हुए भी अंजान बने हुए हैं। दो दिन पहले कुछ विद्यार्थी बार-बार स्कूल बंद होने के कारण सड़कों पर आकर अपना रोष भी जता चुके हैं।

यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि कश्मीर के इस माहौल के कारण कई परिवार अपने बच्चों को जम्मू तो कई बाहरी राज्यों में भेज चुके हैं। वे यह नहीं चाहते कि अलगाववादियों के निहित स्वाथों का खामियाजा उनके बच्चों को भुगतना पड़े। सोचनीय विषय यह है कि संपन्न परिवार तो अपने बच्चों को बाहर भेज सकते हैं मगर ज्यादातर परिवारों के लिए ऐसा करना संभव नहीं है। वे कश्मीर में हालात सामान्य होने की दुआ करने के अलावा कुछ नहीं कर पा रहे हैं। राज्य सरकार को इस पर मंथन करने की जरूरत हैं। बार-बार बंद के आह्वान का असर शैक्षिक संस्थानों पर न पड़े, इसके लिए वैकल्पिक व्यवस्था करने की आवश्यकता है। विगत कुछ वर्षो से बच्चों की पढ़ाई जिस प्रकार से कश्मीर में प्रभावित हो रही है, अगर ऐसा ही आने वाले समय में भी जारी रहा तो इसका खामियाजा पूरी एक पीढ़ी को भुगतना पड़ेगा। राज्य सरकार को अलगाववादियों के खिलाफ कड़े कदम उठाने की जरूरत है ताकि बच्चों के भविष्य अंधकारमय न हो।

[ स्थानीय संपादकीय: जम्मू-कश्मीर ]