जम्मू-कश्मीर स्थित पवित्र अमरनाथ गुफा मार्ग पर भजन-मंत्रोच्चार पर रोक लगाने के बाद नेशनल ग्रीन टिब्यूनल (एनजीटी) ने इस विवादास्पद फैसले पर राजनीति गर्माते देख मामले की गंभीरता को समझा और केवल गुफा के अंदर शांति बनाए रखने की बात कही है, लेकिन विपक्षी दलों और धार्मिक संगठनों को मुद्दा जरूर मिल गया है कि यह सरासर हिंदुओं के धार्मिक मामले में हस्तक्षेप है। एनजीटी ने अपनी सफाई में कहा है कि महाशिवलिंग की प्राकृतिक अवस्था और पवित्रता को ध्वनि, गरमाहट, तरंगों और अन्य चीजों से कोई नुकसान न पहुंचे, इसलिए यह आदेश जारी किया गया है। पीठ ने यह भी कहा है कि अंतिम सीढ़ी से बाबा बर्फानी की गुफा के प्रवेश द्वार के बीच की दूरी बमुश्किल तीस कदम है और यह रोक इस सीढ़ी के बाद है, लेकिन विपक्षी राजनीतिक दल इसे गलत ठहरा रहे हैं।

उनका मानना है कि वह न्यायिक आदेश का पालन करते हैं, लेकिन किसी के धर्म में हस्तक्षेप करना उचित नहीं है। उनकी बात में भी तर्क है कि वर्ष 2008 में अमरनाथ भूमि आंदोलन में भाजपा ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था। यही नहीं, इस आंदोलन की वजह से भाजपा को वर्ष 2008 विधानसभा चुनावों में 11 सीटें मिली थीं, लेकिन इस मुद्दे पर भाजपा की खामोशी पर सवाल उठने लगे हैं क्योंकि भाजपा को हिंदुओं की पार्टी माना जाता है। भाजपा से लोगों को काफी उम्मीदें हैं। इसलिए लोगों का गुस्सा जायज है। दीगर बात यह न्यायिक फैसला है।

यह फैसला सभी को मान्य होना चाहिए, लेकिन इसमें जनभावनाओं का भी ध्यान रखना चाहिए। मंदिरों में घंटियां भी बजती हैं। यह करोड़ों लोगों की आस्था का सवाल है। इससे पहले भी एनजीटी ने माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए प्रतिदिन 50 हजार श्रद्धालुओं के दर्शन की सीमा तय की है। अमरनाथ गुफा के आसपास मंत्रोच्चार व घंटियां बजाने पर रोक पर अध्ययन करने की जरूरत है, क्योंकि शरीर की गर्मी और घंटियों के कंपन से शिवलिंग के पिघलने की संभावना बनी रहती है। 

[जम्मू एंड कश्मीर संपादकीय]