सरकार की सार्थक पहल का लाभ तब तक नहीं मिल सकता जब तक लोग अपनी सोच में बदलाव न करें। पिछले माह प्रदेश सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए गुड़िया हेल्पलाइन और शक्ति एप की शुरुआत की थी। नि:संदेह यह महिलाओं के हित में बड़ा कदम है, लेकिन इसके बावजूद उनके खिलाफ अपराध के मामलों में कमी न आना समाज के एक वर्ग की विकृत सोच को उजागर करने के लिए काफी है। एक ऐसा वर्ग, जिसे महिलाओं के सम्मान की कोई फिक्र नहीं है। महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि तमाम सख्त कानूनों के बावजूद महिलाएं न घर में सुरक्षित हैं और न ही बाहर। प्रदेश में पिछले कुछ समय से महिलाओं पर अपराध के बढ़ते मामले आंखें खोलने वाले हैं। इनसे केवल महिला सुरक्षा पर ही चिंता पैदा नहीं होती बल्कि प्रदेश की साख को भी बट्टा लग रहा है। एक दिन पहले ही कांगड़ा जिले में नर्सिग की छात्र की हत्या, शिमला जिले के नेरवा में मूक-बधिर महिला से दुष्कर्म व हमीरपुर के भोरंज से नाबालिग छात्र का अपहरण करने के बाद दुष्कर्म जैसे मामले सामने आए हैं।

प्रताड़ना से तंग आकर महिलाएं अगर आत्महत्या कर रही हैं तो सोचने की जरूरत है कि ऐसी नौबत क्यों आई। कसौली व बद्दी के मामले चौंकाने वाले हैं। कसौली में शादी के नौ महीने बाद ही युवती ने आत्महत्या कर ली जबकि बद्दी में महिला ने दो बच्चों के साथ खुद को आग के हवाले कर दिया। बिलासपुर जिले के घुमारवीं में कुछ दिन पहले ऐसे सेंटर का भंडाफोड़ हुआ, जहां भ्रूण परीक्षण किया जाता था। इसके अलावा भी महिलाओं के खिलाफ अपराध व ¨हसा के मामले कम नहीं हैं। समझ से परे है कि हर क्षेत्र में खुद को साबित करने वाली महिलाएं इस चुनौती का सामना करने से पीछे क्यों हट जाती हैं? महिलाएं कब तक इस समाज में जुर्म सहेंगी? आज की युवा पीढ़ी क्यों नहीं सोच बदल रही है? ये ऐसे सवाल हैं, जिनका उत्तर तलाश करना जरूरी है। महिलाओं के खिलाफ अपराध को रोकने का एक ही उपाय है कि लोग उनके प्रति सोच में बदलाव करें। महिलाओं को सम्मान दें और उन्हें समाज में बराबरी का हक मिलना चाहिए। बेटियों को देवी का दर्जा तभी मिल सकेगा, जब यह मन से माना भी जाएगा। नारी सशक्त होगी, तभी समाज, प्रदेश व देश सशक्त हो पाएगा।

[ स्थानीय संपादकीय: हिमाचल प्रदेश ]