भारतीय समाज में महिला को देवी के समान पूजा जाता है लेकिन उनके प्रति नकारात्मक पहलुओं को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मौजूदा दौर में महिला सुरक्षा के मायने बहुत अहम हैं, चाहे वह घर पर हो, घर से बाहर। महिलाओं के खिलाफ कई अपराध इतने भयावह होते हैं कि आम आदमी की रूह तक कांप जाए। इन्हीं घटनाओं के कारण महिला सुरक्षा संदेह की स्थिति में पड़ती दिख रही है। 21वीं सदी में ऐसी घटनाओं का होना हमारी संस्कृति को केवल शर्मसार ही करता है। महिलाओं के सम्मान व उन्हें आगे बढ़ने के तमाम अवसर उपलब्ध करवाने के दावे चाहे कितने ही किए जाएं, लेकिन यह हकीकत नहीं बदली कि अब भी उनसे समाज में दोयम दर्जे का व्यवहार हो रहा है। सरकारी आंकड़ों से साफ हो जाता है कि देवभूमि हिमाचल भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि हिमाचल में दुष्कर्म, छेड़छाड़, महिलाओं से मारपीट के मामलों में कमी नहीं आई है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2012 में दुष्कर्म के 183 मामले दर्ज किए गए थे जबकि वर्ष 2017 में यह संख्या 249 हो गई। इससे न केवल प्रगतिशील कहे जाने वाले समाज की सोच पर सवाल उठता है बल्कि महिलाओं की सहनशीलता पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है। यह चिंता का विषय है कि महिलाओं को सुरक्षा व संबल देने के तमाम प्रयासों के बावजूद उन्हें वह स्थान हासिल नहीं हो सका है, जिसकी वे हकदार हैं।

महिलाओं की सुरक्षा से चिंतित प्रदेश सरकार ने सराहनीय पहल की है कि हरियाणा की तर्ज पर नाबालिग से दुष्कर्म पर कानून को और सख्त किया जाएगा। इस अपराध के दोषी को फांसी तक की सजा का प्रावधान किया जाएगा। बेशक हिमाचल में पहले ही कड़े कानून लागू हैं लेकिन सरकार अब इसे और कठोर करने पर गंभीरता से विचार कर रही है। महिलाओं के प्रति समाज की सोच में बदलाव हुआ है, लेकिन अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है। माता-पिता के स्तर से शुरू होकर पति, ससुराल व समाज तक की सोच में बदलाव जरूरी है। समाज का दायित्व है कि महिलाओं को ऐसा परिवेश दें कि वे खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें। इसी से वे पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर देश को विकसित एवं समृद्ध बनाने में योगदान दे सकेंगी।

[ स्थानीय संपादकीय: हिमाचल प्रदेश ]