-----जब तक रैगिंग पर पूरी तरह प्रतिबंध नहीं लगता शिक्षा परिसरों में नव प्रवेशियों के लिए वातावरण सहज नहीं बनाया जा सकता।-----दुखद है कि रैगिंग पर कड़े प्रतिबंध के बावजूद परंपरा के नाम पर यह अब भी बड़े संस्थानों में बरकरार है और आयेदिन घटनाएं प्रकाश में आ रही हैं। राजधानी के किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में ऐसी घटनाएं यदि सामने आती हैं तो प्रकरण और गंभीर हो जाता है। ऐसे भी मामले सामने आए जिनमें सीनियरों ने जूनियरों की रैगिंग के लिए वाट्सएप व वीडियो कॉलिंग का प्रयोग किया और अपने भविष्य की चिंता से ग्रस्त छात्र प्रतिवाद भी न कर सके। आश्चर्यजनक है कि कुछ समय पहले ही मानव संसाधन मंत्री ने रैगिंग रोकने के लिए एप लांच किया था और दावा किया था कि इसके जरिये ऐसी घटनाओं की रोकथाम संभव है। इसे एंटी रैगिंग एप का नाम दिया गया था और यह एंड्रायड फोन पर डाउनलोड किया जाना था। केजीएमयू प्रशासन ने संभवत: छात्रों को इस एप की जानकारी नहीं दी थी, अन्यथा उन्हें शर्मिदगी का सामना न करना पड़ता। इससे पहले भी प्रदेश के कई इंजीनियरिंग संस्थानों में भी रैगिंग के मामले सामने आ चुके हैं। हालांकि, छात्रों के भविष्य को देखते हुए संस्थान प्रबंधन की भी पहली कोशिश ऐसी घटनाओं को छिपाने के रूप में ही होती हैं। वस्तुत: रैगिंग नए छात्रों को दी जाने वाली ऐसी मानसिक और शारीरिक यातना है, जिसकी कभी अनुमति नहीं दी जा सकती। घर छोड़कर पहली बार कालेज आए किशोर छात्रों को ऐसी घटनाएं भीतर से तोड़ देती हैं और इसी कारण आत्महत्या के मामले भी सामने आ चुके हैं। कुछ घटनाएं तो रैगिंग के नाम पर ऐसी अमानवीय यातनाओं की हैं, जिन्हें सभ्य समाज कभी स्वीकार नहीं कर सकता। दुर्भाग्य से उत्तर प्रदेश में ऐसी घटनाएं सबसे अधिक हैं और यूजीसी के आंकड़ों के ही अनुसार 2009 से लेकर 2015 के बीच यहां सर्वाधिक 565 घटनाएं रैगिंग की हुईं। इसके बाद पश्चिम बंगाल का नंबर है जहां इसी अवधि में 365 घटनाएं हुईं। केजीएमयू में सीनियरों ने जूनियर छात्रों को थप्पड़ मारने तक की सजा सुनाई है। यह अमानवीयता की हद है और जब तक इस पर पूरी तरह प्रतिबंध नहीं लगता शिक्षा परिसरों में नव प्रवेशियों के लिए वातावरण सहज नहीं बनाया जा सकता।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]