जानलेवा घटनाओं-दुर्घटनाओं के बाद हमारे राजनीतिक दल किस तरह रोटियां सेंकने में लग जाते हैैं, इसका ही नमूना है मुंबई में पैदल यात्री पुल पर हुए हादसे के बाद विभिन्न दलों की बयानबाजी। इस दर्दनाक हादसे के बाद कई दलों के नेताओं ने जैसे बेतुके बयान दिए उससे यह नहीं लगता कि उनकी दिलचस्पी रेलवे के साथ-साथ अन्य शहरी ढांचे को दुरुस्त करने पर है। जहां शिवसेना ने एलफिंस्टन फुटओवर ब्रिज पर हुए हादसे के बाद बुलेट ट्रेन पर निशाना साधा वहीं मनसे ने भी ऐसा करते हुए यह भी कह डाला कि जब तक दूसरे प्रांतों के लोग मुंबई आते रहेंगे, ऐसे हादसे होते रहेंगे। मनसे के अक्खड़ नेता राज ठाकरे ने तो यह धमकी भी दे डाली कि जब तक मुंबई की ट्रेन सेवा सही नहीं होती तब तक बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए एक ईंट भी नहीं रखने देंगे। इसमें दोराय नहीं कि मुंबई की जीवन रेखा मानी जाने वाली उपनगरीय रेलसेवा की दशा दयनीय है और इसके लिए रेल मंत्रालय की जवाबदेही बनती है, लेकिन बेहतर होता कि बीएमसी पर आधिपत्य रखने वाली शिवसेना को यह समझ आए कि मुंबई में बुनियादी सुविधाओं के अभाव के लिए वही अधिक जिम्मेदार है। हाल की बारिश के दौरान मुंबई बदहाल नजर आई तो बीएमसी के नाकारापन के ही कारण। राजनीतिक दलों को सबसे पहले तो यह बुनियादी बात समझनी होगी कि बुलेट ट्रेन परियोजना का मुंबई की उपनगरीय रेलसेवा अथवा रेल के अन्य ढांचे से कोई सीधा लेना-देना नहीं। इसके बाद उन्हें इस पर ध्यान देना होगा कि महानगरों का बुनियादी ढांचा उनकी अपनी नाकामी के कारण दुरुस्त नहीं हो पा रहा है। यह किसी से छिपा नहीं कि शहरीकरण संबंधी हर छोटी-बड़ी योजना पर अमल की नौबत आते ही राजनीतिक दलों में खींचतान शुरू हो जाती है-कभी श्रेय लेने की होड़ में तो कभी योजना के मनमाफिक न होने पर। रही-सही कसर सुस्त और बेपरवाह नौकरशाही पूरी कर देती है। इस सबके चलते ही शहरी ढांचे में मामूली सुधार भी मुश्किल से और कई बार तो जरूरत से ज्यादा देर में होता है।
यह अच्छा हुआ कि मुंबई में हुए हादसे के बाद रेल मंत्रालय को यह याद आया कि क्या कुछ लंबित है और कुछ तत्काल किया जाना जरूरी है। उसकी यह सक्रियता फौरी नहीं होनी चाहिए। उसे मुंबई ही नहीं अन्य महानगरों की भी उपनगरीय रेलसेवाओं को सुरक्षित और सुविधाजनक बनाने के लिए ठोस योजनाओं के साथ आगे आना होगा और उन पर तय समय में अमल करके दिखाना होगा। यही काम शहरों के ढांचे की देखरेख करने वाले अन्य विभागों को भी करना होगा। इस क्रम में केंद्र और राज्य सरकारों को यह ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि जो भी योजनाएं बनें वे आधी-अधूरी और अपर्याप्त साबित होने वाली न हों। यह इसलिए, क्योंकि अपने देश की यह एक बड़ी बीमारी है कि शहरीकरण के ढांचे के सुधार और विस्तार में भविष्य की जरूरतों का ध्यान मुश्किल से ही रखा जाता है। यही कारण है कि जब तक कोई प्लेटफॉर्म, पैदल यात्री पुल, फ्लाईओवर या बाईपास बनकर तैयार होता है तब तक वह अपर्याप्त दिखने लगता है।

[ मुख्य संपादकीय ]