करतारपुर गलियारे को लेकर दूसरे दौर की बातचीत से पहले खालिस्तान समर्थक गोपाल सिंह चावला को पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी से बाहर किए जाने से ऐसा प्रतीत होता है कि भारत का दबाव रंग ला रहा है। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि पाकिस्तान ने भारत को उकसाने के लिए ही गोपाल सिंह को करतारपुर गलियारे संबंधी समिति में शामिल किया था। भारत ने पाकिस्तान की इस हरकत पर न केवल कड़ी आपत्ति जताई थी, बल्कि करतारपुर गलियारे को लेकर होने वाली बातचीत भी रद कर दी थी। यदि पाकिस्तान ने यह हरकत न की होती तो करतारपुर गलियारे पर दूसरे दौर की बातचीत न जाने कब संपन्न हो जाती।

वैसे गोपाल सिंह के निष्कासन के बाद भी इसकी उम्मीद कम है कि बातचीत सकारात्मक माहौल में होगी और करतारपुर गुरुद्वारे तक पहुंच आसान करने वाले इस गलियारे के निर्माण का काम तेजी से आगे बढे़गा। इसका कारण यह है कि पाकिस्तान ने गोपाल सिंह की खाली जगह एक अन्य खालिस्तानी समर्थक से भर दी है। यह एक तरह की शरारत ही है। पाकिस्तान के ऐसे हथकंडों को देखते हुए उचित यही है कि उसके इरादों को लेकर सतर्क रहा जाए। यह आशंका निराधार नहीं है कि पाकिस्तान इस गलियारे के जरिये खालिस्तानी तत्वों को बढ़ावा दे सकता है। यह किसी से छिपा नहीं कि भारत से सिख तीर्थ यात्री जब भी पाकिस्तान जाते हैं तो वहां के गुरुद्वारों में खालिस्तानी तत्वों की सक्रियता बढ़ जाती है। ये तत्व भारत से गए श्रद्धालुओं को उकसाने और बहकाने की कोशिश करते हैैं। गोपाल सिंह यही काम करता चला आ रहा है।

भारत इसकी अनदेखी नहीं कर सकता कि पाकिस्तान न केवल अपनी धरती पर खालिस्तानी तत्वों को शह-समर्थन देता रहता है, बल्कि ब्रिटेन और कनाडा में भी ऐसे तत्वों की मदद करता है। ब्रिटेन और कनाडा में खालिस्तान समर्थकों की सक्रियता की एक वजह इन देशों की ओर से ऐसे तत्वों के प्रति बरती जाने वाली नरमी है। कनाडा सरकार ऐसे तत्वों के प्रति कुछ ज्यादा ही नरम है और इसी कारण वहां ऐसे तत्व कहीं अधिक बेलगाम हैैं। अभी हाल में भारत ने जिस चरमपंथी संगठन सिख फॉर जस्टिस पर पाबंदी लगाई उसे मुख्यत: पाकिस्तान, ब्रिटेन और कनाडा में ही संरक्षण मिल रहा है।

यह जरूरी है कि खालिस्तानी तत्वों के प्रति भारत ने जैसा कठोर रवैया पाकिस्तान के प्रति अपनाया वैसा ही कनाडा और ब्रिटेन के प्रति भी अपनाए। इसी के साथ करतारपुर गलियारे के निर्माण पर बातचीत आगे बढ़ाते समय वे सब प्रबंध भी करने होंगे जिससे पाकिस्तान इस गलियारे का दुरुपयोग न करने पाए। पाकिस्तान चाहे जो दावे करे, फिलहाल यही अधिक नजर आता है कि वह अपनी भारत विरोधी हरकतों का परित्याग करने के लिए तैयार नहीं।

बेहतर होगा कि करतारपुर गलियारे पर बातचीत के दौरान पाकिस्तान को यह संदेश देने में संकोच न किया जाए कि उसके साथ अन्य मसलों पर वार्ता की सूरत क्यों नहीं बन रही है? पाकिस्तान के प्रति तनिक भी नरमी नहीं बरती जानी चाहिए। सच तो यह है कि उसे मुंबई और पठानकोट हमले के उन गुनहगारों की याद दिलाई जानी चाहिए जो उसके यहां छुट्टा घूम रहे हैैं।