राज्य उच्च न्यायालय का राज्य में ट्रैफिक जाम से निपटने के लिए सरकार को जवाब तलब किया जाने से लोगों को उम्मीद बंधी है कि कोर्ट से ही उन्हें न्याय मिल सकेगा। राज्य में कई सरकारें आईं और उन्होंने शहरों में ट्रैफिक जाम से निपटने के लिए कई योजनाएं तो बनाई, लेकिन इन पर अमल नहीं हो सका। जम्मू के शकुंतला रोड से अंबफला चौक तक फ्लाई ओवर बनाने की योजना कांगे्रस कार्यकाल में बनी। लेकिन राजनीतिक स्वार्थ के कारण यह परियोजना सिरे नहीं चढ़ पाई। विडंबना यह है कि सरकार के पास शहरों में ट्रैफिक जाम से निपटने के लिए दूरगामी योजना नहीं है। राज्य में हर साल लाखों नए वाहन रजिस्टर्ड हो जाते हैं। लेकिन सड़कों की हालत जस की तस है। राज्य उच्च न्यायालय ने भी सरकार से यह पूछा है कि सड़कों को चौड़ा करने के लिए क्या किया जा रहा है। क्या निमार्ण एजेंसी ने कोई रणनीति बनाई है। कोर्ट ने यह सवाल बढ़ते ट्रैफिक जाम से निपटने के लिए दायर जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान किए। इससे जाहिर हो जाता है कि जज भी स्वयं अनुभव कर रहे है कि बढ़ती ट्रैफिक को व्यवस्थित करने के लिए कोई दूरगामी योजना नहीं होगी तो टै्रफिक व्यवस्था बद से बदतर हो जाएगी। टै्रफिक को लेकर सरकार की विफलता ही नजर नहीं आ रही है बल्कि कई मासूम लोगों की जान भी जा रही है। इस वर्ष के पहले तीन महीनों में ही राज्य में छह सौ लोगों की मौत हो गई। अर्थात जम्मू-कश्मीर में हर दिन औसतन तीन लोगों की सड़क दुर्घटना में मौत हो जाती है। विडंबना यह है कि बावजूद इसके सरकार कभी भी इस मुद्दे पर गंभीर नजर नहीं आई। सड़क दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए पुख्ता नीति बनाने और जेएंडके स्टेट रोड सेफ्टी काउंसिल को सक्रिय करने के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए है। सरकार को भी योजनाओं के प्रति गंभीर होना पड़ेगा। इससे बचने के अलावा लोगों में ट्रैफिक नियमों के प्रति जागरूकता अभियान भी चलाना चाहिए। सरकार को भी इस दिशा में दूरगामी योजना बनानी होगी ताकि शहरों में जाम से लोगों को निजात मिल सके।

[स्थानीय संपादकीय : जम्मू-कश्मीर ]