दिल्ली के साथ देश को हिला देने वाली बाटला हाउस मुठभेड़ के दौरान पुलिस इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा की शहादत का कारण बने आरिज खान को दोषी करार दिए जाने से महज एक खूंखार आतंकी को ही उसके किए की सजा मिलना सुनिश्चित नहीं हुआ, बल्कि भारतीय राजनीति का घिनौना चेहरा भी नए सिरे से सामने आ गया। इस मुठभेड़ में दो आतंकी मारे गए थे और उनसे लड़ते हुए मोहन चंद्र शर्मा वीरगति को प्राप्त हुए थे। मारे गए आतंकी इंडियन मुजाहिदीन के गुर्गे थे और वे देश के अनेक हिस्सों में बम विस्फोट करने के लिए जिम्मेदार थे, लेकिन उन्हें ठिकाने लगाए जाने पर संतोष व्यक्त किए जाने और पुलिस इंस्पेक्टर के सर्वोच्च बलिदान का स्मरण किए जाने के बजाय रोना-धोना शुरू कर दिया गया। आतंकियों के लिए आंसू बहाने में अग्रणी थी कांग्रेस। उसके साथ अन्य राजनीतिक दल भी इस मुठभेड़ को फर्जी करार दे रहे थे। हालांकि तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम इस मुठभेड़ को सही बता रहे थे, लेकिन कांग्रेस के ही कई वरिष्ठ नेता उनकी सुनने को तैयार नहीं थे। इस मुठभेड़ को संदिग्ध बताकर राजनीतिक रोटियां सेंकने का सिलसिला किस कदर लंबा चला, इसका पता इससे चलता है कि 2008 की इस घटना को 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी भुनाने की कोशिश की गई। इसी कोशिश के तहत तब के केंद्रीय विधि मंत्री सलमान खुर्शीद ने आजमगढ़ की एक रैली में यहां तक कह दिया कि उन्होंने जब सोनिया गांधी को बाटला हाउस हादसे के फोटो दिखाए तो उनकी आंखों से आंसू फूट पड़े और उन्होंने उन्हेंं प्रधानमंत्री के पास जाने को कहा।

सलमान खुर्शीद और ऐसे ही अन्य कांग्रेसी नेता बाटला हाउस मुठभेड़ को लेकर जानबूझकर गलतबयानी इसलिए कर रहे थे ताकि चुनावी लाभ लिया जा सके। चूंकि मारे गए आतंकी आजमगढ़ के थे इसलिए वहां के लोगों को खासतौर पर यह संदेश देने की कोशिश की जा रही थी कि वे तो निर्दोष लड़के थे। ऐसा करके केंद्रीय सत्ता को संचालित करने वाला दल ही आतंक की घोर निर्लज्जता के साथ अनदेखी करने में लगा हुआ था। हैरत नहीं कि इसी तरह की सस्ती और पुलिस एवं खुफिया एजेंसियों का मनोबल गिराने वाली राजनीति के कारण आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन का दुस्साहस बढ़ा हुआ हो। जो भी हो, अब जब बाटला हाउस से भागे आतंकी आरिज खान को दोषी करार दिया गया है तब यह आवश्यक हो जाता है कि यहां हुई मुठभेड़ पर सवाल उठाने वाले नेता देश और खासकर सुरक्षा एजेंसियों से माफी मांगें। नि:संदेह आवश्यक यह भी है कि आतंक से जुड़े इस तरह के मामलों में अपराधियों को जल्द सजा सुनाए जाने का सिलसिला तेज हो।