यह अच्छा हुआ कि भारतीय प्रधानमंत्री ने कनाडा के प्रधानमंत्री के समक्ष यह स्पष्ट करने में कोई संकोच नहीं दिखाया कि भारत अपनी एकता-अखंडता को दी जानी वाली किसी भी चुनौती को बर्दाश्त नहीं करेगा। इस बात को दो टूक ढंग से रेखांकित किया जाना इसलिए आवश्यक हो गया था, क्योंकि इसमें कोई संशय नहीं कि कनाडा में खालिस्तान का राग अलाप रहे अतिवादी तत्वों को संरक्षण मिल रहा है। सबसे खराब बात यह है कि कनाडा में ऐसे तत्वों को संरक्षण देने का काम तबसे और तेज हुआ है कि जबसे जस्टिन ट्रूडो ने वहां की सत्ता संभाली है। हालांकि कनाडा में पहले भी खालिस्तान समर्थक तत्वों और यहां तक कि घोषित आतंकवादियों को भी संरक्षण मिलता रहा है, लेकिन यह शुभ संकेत नहीं कि जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी ऐसे लोगों को गले लगाने के लिए कुछ ज्यादा ही आतुर दिखती है। यह समझ आता है कि जस्टिन ट्रूडो कनाडा में बसी सिख आबादी का समर्थन पाकर राजनीतिक तौर पर मजबूती हासिल करना चाहते हैैं, लेकिन आखिर वह अपनी राजनीति चमकाने के फेर में भारत के लिए खतरा बने तत्वों को संरक्षण कैसे दे सकते हैैं?

नि:संदेह जस्टिन ट्रूडो करिश्माई नेता की छवि रखते हैैं, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि वह भारत के हितों की परवाह करते न दिखें। क्या उन्हें यह मंजूर होगा कि भारतीय प्रधानमंत्री कनाडा जाएं तो क्यूबेक के अलगाववादियों से मेल-मुलाकात करें? जस्टिन ट्रूडो ने भारत में एक तरह से यही काम किया। वह भारत दौरे पर एक ऐसे तथाकथित पत्रकार को लाए जिसने 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री की कनाडा यात्रा के दौरान अतिवादियों के साथ खड़े होकर उनका भद्दे ढंग से विरोध किया था? आखिर इसका क्या मतलब कि कनाडा उच्चायोग एक ऐसे शख्स को भोज पर आमंत्रित करे जो पंजाब के एक नेता की हत्या में सजा काट चुका है? यह सजायाफ्ता शख्स भी जस्टिन ट्रूडो की यात्रा के सिलसिले में कनाडा से भारत आया हुआ है।

नि:संदेह यह भारत सरकार को भी देखना चाहिए कि आखिर इस शख्स को वीजा कैसे मिल गया और क्या कारण रहा कि कुछ समय पहले उसका नाम निगरानी सूची से हटा दिया गया? जब सरकार को यह पता था कि कनाडा में भारत के अलगाववादियों के प्रति नरमी बरती जा रही है तब किसी को इसके प्रति चौकन्ना रहना चाहिए था कि जस्टिन ट्रूडो के साथ अवांछित तत्व न आने पाएं। उम्मीद है कि भारत सरकार ने जरूरी सबक सीख लिए होंगे। कनाडा और भारत सरकार ने अनेक समझौतों के साथ कट्टरता और आतंकवाद के खिलाफ सहयोग के लिए एक ढांचे पर भी सहमति जताई है। कनाडा सरकार को इस सहमति के अनुरूप काम करने में तत्परता दिखानी चाहिए और अपने यहां इंंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन सरीखे अलगाववादी एवं आतंकी संगठनों के खिलाफ जरूरी सख्ती दिखानी चाहिए। यदि कनाडा भारत का हितैषी है तो उसे अपने यहां रह रहे पाकिस्तानी मूल के उन तत्वों के खिलाफ भी कड़ाई करनी चाहिए जो कश्मीर के बहाने अतिवाद को हवा दे रहे हैैं। ऐसा करना खुद कनाडा के हित में है, क्योंकि ऐसे तत्व एक दिन उसके लिए भी खतरा बन सकते हैैं।

[ मुख्य संपादकीय ]