एक ऐसे समय जब यह दिखने लगा था कि भारत और पाकिस्तान के रिश्ते तनाव मुक्त होने की दिशा में बढ़ने लगे हैं तब भारत सरकार की ओर से यह स्पष्ट करना आवश्यक था कि वह पाकिस्तान में आतंकियों की तथाकथित धरपकड़ से संतुष्ट नहीं। आतंकियों की गिरफ्तारी के साथ आतंकी संगठनों पर पाबंदी लगाने के हाल के उसके कदम यह बिल्कुल भी सुनिश्चित नहीं करते कि वह आतंकवाद पर सचमुच लगाम लगाने जा रहा है। आखिर यह एक तथ्य है कि पाकिस्तान अपने संरक्षण वाले चुनिंदा आतंकी संगठनों के खिलाफ इस तरह की कागजी कार्रवाई पहले भी कर चुका है।

यह भी विचित्र है कि वह जैश और लश्कर जैसे आतंकी संगठनों पर तो कार्रवाई का दिखावा कर रहा है, लेकिन हिजबुल मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठन के खिलाफ दिखावे की भी कार्रवाई नहीं कर रहा है। ध्यान रहे कि बीते दिनों इसी पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठन के एक गुर्गे ने जम्मू में विस्फोट किया था। यह अच्छा हुआ कि भारत ने पाकिस्तान के कदमों को अपर्याप्त और एक तरह की दिखावे की कार्रवाई करार दिया, लेकिन उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि वह दुनिया को धोखा न देने पाए।

यह एक धोखा ही है कि पाकिस्तान के विदेश मंत्री आतंकी संगठन जैश ए मुहम्मद के खिलाफ कार्रवाई करने की बात करते हैं तो पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता यह कहते हैं कि इस नाम का कोई संगठन तो अब अस्तित्व में ही नहीं है। इससे तो यही पता चलता है कि पाकिस्तान एक बार फिर दुनिया की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश में जुट गया है। भारत को इस तरह की चालबाजी को लेकर न केवल खुद सतर्क रहना होगा, बल्कि विश्व समुदाय को भी इसके प्रति आगाह करना होगा कि पाकिस्तान उसे झांसा देने की कोशिश कर रहा है। इस मामले में पाकिस्तान के प्रति नरमी बरतने वाले चीन सरीखे देशों के रवैये को लेकर कहीं अधिक सतर्क रहने की जरूरत है।

भारत को अमेरिका के रवैये पर भी निगाह रखनी होगी, क्योंकि वह अफगानिस्तान से निकलने की कोशिश में पाकिस्तान के संरक्षण वाले तालिबान से समझौते की जल्दी में है। तालिबान से जल्दबाजी में किया गया कोई समझौता न केवल अफगानिस्तान को खतरे में डालेगा, बल्कि पाकिस्तान के दुस्साहस को भी बढ़ाएगा। यह ठीक है कि विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने यह साफ कर दिया कि करतारपुर गलियारे को लेकर अगले हफ्ते शुरू होने वाली बातचीत को द्विपक्षीय वार्ता की शुरुआत के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए, लेकिन इसका अंदेशा तो है ही कि पाकिस्तान इसकी आड़ में उस दबाव से मुक्त होने की कोशिश कर सकता है जो भारत ने बालाकोट हमले के बाद उस पर बनाया हुआ है।

नि:संदेह बालाकोट हमले के जरिये भारत ने यह दिखा दिया कि वह सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने की क्षमता रखता है, लेकिन अभी यह सुनिश्चित करना शेष है कि आगे भी इस तरह की कार्रवाई की स्थिति में पाकिस्तान पलटवार करने का दुस्साहस न दिखा सके। इस दुस्साहस के दमन के बाद ही पाकिस्तान के सही रास्ते पर चलने की कुछ उम्मीद की जा सकती है।