अनुच्छेद-370 की समाप्ति के बाद जम्मू-कश्मीर में हर दिन सुधरते हालात के बीच रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने जिस तरह यह संकेत दिया कि अगर आवश्यकता हुई तो भारत नाभिकीय हथियारों का पहले इस्तेमाल न करने के अपने सिद्धांत पर फिर से विचार कर सकता है उसका संदेश पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को भी सुनना चाहिए और वहां की सेना को भी। कश्मीर के मामले में अंतरराष्ट्रीय समुदाय में पूरी तरह अलग-थलग पड़ चुके इमरान खान को अब यह सच्चाई समझने में देर नहीं करनी चाहिए कि परमाणु हथियारों के सहारे ब्लैकमेलिंग की कहीं कोई गुंजाइश नहीं रह गई है और वह बार-बार युद्ध का जो डर दिखाते रहते हैैं वह उनके खोखलेपन को ही उजागर करता है।

इमरान खान से भी अधिक पाकिस्तानी सेना को एक सैन्य बल के रूप में अपने आचरण को सुधारना होगा। भारत ने शुरुआत से ही एक जिम्मेदार नाभिकीय शक्ति का परिचय दिया है। जिम्मेदारी का यह भाव परमाणु हथियारों का पहले इस्तेमाल न करने के उसके संकल्प से ही परिलक्षित होता है। यह संकल्प अटूट है, लेकिन पाकिस्तानी शासन और सेना के लिए यह समझ लेना आवश्यक है कि अगर परिस्थितियों ने भारत को इस संकल्प से बाहर निकलने के लिए विवश किया तो वह ऐसा करने से हिचकिचाएगा नहीं।

भारत के खिलाफ आतंकवाद को छद्म युद्ध के हथकंडे के रूप में इस्तेमाल करने वाली पाकिस्तानी सेना यह सहन नहीं कर पा रही है कि जम्मू-कश्मीर में हालात तेजी से सामान्य हो रहे हैैं। कश्मीर के मोर्चे पर हर स्तर पर पराजित हो जाने के बाद पाकिस्तान आतंकवाद के सिलसिले को तेज कर सकता है। इसके प्रति हर स्तर पर सतर्क रहने की आवश्यकता है। यह उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में पड़ोसी देशों के साथ पूरी दुनिया को आश्वस्त किया कि भारत दक्षिण एशिया से आतंकवाद के खात्मे के लिए प्रतिबद्ध है और आगे भी इसके लिए पूरी जिम्मेदारी से कदम उठाए जाते रहेंगे।

पुलवामा आतंकी हमले के बाद बालाकोट में सैन्य कार्रवाई करके भारत अपने इरादे जता भी चुका हैै। समस्या यह है कि देश में अभी भी एक वर्ग ऐसा है जो केवल सरकार की आलोचना करने के अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने में इस हद तक चला जाता है कि उसे आतंकवाद की पक्षधरता में भी कोई बुराई नजर नहीं आती। ऐसे ही तत्वों के आधार पर अंतरराष्ट्रीय मीडिया भी कश्मीर को लेकर गलत रिपोर्टिंग जारी रखे हुए है और पाकिस्तान का दुस्साहस भी बढ़ता है। यह आवश्यक है कि पाकिस्तान के साथ-साथ कश्मीर की अशांति के लिए जिम्मेदार ऐसे तत्वों को भी कोई कड़ा संदेश दिया जाए।