हरियाणा में गोतस्करी का लगातार बढ़ना और रोकथाम के तमाम प्रयासों के बावजूद बंद न हो पाना चिंताजनक है। प्रदेश में गोतस्कर कितने बैखौफ हैं, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वे पुलिस पर हमला बोल देते हैं। उनपर गोलियां चला देते हैं। कई बार पुलिस वालों की जान भी चली जाती है। उनकी गाड़ियां तोड़ डाली जाती हैं। यमुनानगर से लेकर नूंह तक यह आम बात है। रविवार को भी नूंह में गोतस्करों ने दो पुलिस की दो गाड़ियां तोड़ डालीं। गोरक्षकों से भी उनका टकराव होता रहता है। प्रश्न यह उठता है कि गोतस्करी का इतनी लाभप्रद है कि तस्कर इसके लिए जान की बाजी लगा देते हैं? यदि इसका उत्तर तलाशा जाए तो हां में ही मिलेगा। और यह भी दिलचस्प है कि गोतस्करी को प्रोत्साहन भी पुलिसकर्मी ही देते हैं। उत्तर प्रदेश की सीमा पर उन पोस्टों से जहां से तस्करों के ट्रक पार होते हैं, वहां तैनात पुलिसकर्मियों के लिए ये ट्रक मोटी कमाई का जरिया होते हैं। राजस्थान से हरियाणा तक तस्कर जिन रास्तों से गुजरते हैं, रास्ते में बंधी हुई रकम देते हैं। इसलिए अधिकांश पार हो जाते हैं और उनका हौसला बढ़ता जाता है। किसी भी व्यक्ति को अपराधी बनाने के लिए वह स्थितियां ही जिम्मेदार होती हैं, जिनके कारण वह पहली बार अपराध करके बच निकलता है। यदि ये पहली बार ही पकड़े जाएं तो कुछ दिनों में ही गोतस्करी बंद हो जाएगी। गोवंश उन प्रदेशों को ले जाए जाते हैं, जहां गोवध और गोमांस बिक्री पर प्रतिबंध नहीं है। वहां गोतस्करों को मोटी कीमत मिल जाती है, क्योंकि वहां से गायों का मांस विदेश भेज दिया जाता है। पुलिस गोतस्करी पर विराम लगाना चाहती है तो सबसे पहले तो पुलिसकर्मियों को गोतस्करों से होने वाली आय पर रोक लगाने की व्यवस्था करनी चाहिए। क्योंकि जब तक पुलिसकर्मी लालच में गोवंश से भरे ट्रक पार कराते रहेंगे, न तो गोतस्करी पर अंकुश लगेगा और न गोतस्करों पर।

[ स्थानीय संपादकीय: हरियाणा ]