नीति आयोग की संचालन परिषद की सातवीं बैठक में प्रधानमंत्री ने देश को आत्मनिर्भर बनाने की आवश्यकता पर जो बल दिया, उसकी पूर्ति तभी हो सकती है जब राज्य सरकारें केंद्र के साथ मिलकर इस लक्ष्य को प्राथमिकता के आधार पर पाने के लिए सक्रिय हों। यह सही है कि पिछले कुछ समय से राज्य सरकारें विभिन्न क्षेत्रों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा कर रही हैं, लेकिन इस पर और काम किए जाने की आवश्यकता है।

राज्य सरकारें और केंद्र शासित प्रदेशों को एक-दूसरे की योजनाओं को अपनाने और उनसे सीख लेने का काम करना चाहिए जो प्रभावी सिद्ध हुई हैं अथवा जिनसे आर्थिक विकास एवं जनकल्याण को बल मिला है। यह सब करते हुए उन्हें उन लोकलुभावन योजनाओं से बचना भी होगा जिन्हें मुफ्तखोरी की राजनीति की संज्ञा दी जाती है और जिनके चलते कई राज्यों का बजट घाटा बढ़ता जा रहा है।

निश्चित रूप से जितनी आवश्यकता इसकी है कि राज्यों के बीच आर्थिक विकास के मामले में आपसी प्रतिस्पर्धा हो उतनी ही इसकी भी कि उनमें और केंद्र सरकार के बीच सहयोग भी बढ़े। यह अच्छा है कि नीति आयोग की इस बैठक में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के साथ ही फसलों के विविधीकरण पर व्यापक चर्चा हुई। साथ ही प्रधानमंत्री ने घरेलू उत्पादों को प्राथमिकता देने के साथ ही 'थ्री टी' यानी ट्रेड, टूरिज्म और टेक्नोलाजी को प्रोत्साहन देने का मंत्र भी दिया, लेकिन असल बात तब बनेगी जब इसके सकारात्मक नतीजे भी सामने आएंगे।

प्रधानमंत्री ने फसल विविधीकरण पर चर्चा करते हुए जिस तरह खाद्य तेलों के मामले में आत्मनिर्भर होने पर जोर दिया, उस पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। जिस प्रकार दलहन के मामले में देश आत्मनिर्भर होने के करीब है, उसी तरह तिलहन के मामले में भी आत्मनिर्भरता का लक्ष्य यथाशीघ्र हासिल करने के प्रयत्न होने चाहिए। कोरोना के कारण पिछले तीन वर्षो से नीति आयोग की यह बैठक वर्चुअल रूप से हो रही थी, लेकिन इस बार सभी की व्यक्तिगत उपस्थिति में हुई।

यह दुर्भाग्यपूर्ण रहा कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने इससे दूरी बनाना बेहतर समझा। चंद्रशेखर राव के मामले में तो यह पहले ही स्पष्ट हो गया था वह संकीर्ण राजनीतिक कारणों से इस बैठक में उपस्थित नहीं होंगे, लकिन नीतीश कुमार की अनुपस्थिति का कारण समझना कठिन है। इसलिए और भी, क्योंकि जिस समय दिल्ली में नीति आयोग की बैठक हो रही थी लगभग उसी समय वह पटना में आयोजित एक कार्यक्रम में भाग ले रहे थे।

एक ऐसे समय जब केंद्र और राज्यों के बीच आर्थिक सहयोग के मामले में बेहतर तालमेल की आवश्यकता कहीं अधिक बढ़ गई है तब इस मंच को दलगत राजनीति का अखाड़ा बनाना ठीक नहीं। इस प्रकार के प्रयास संघीय ढांचे की मूल भावना के विपरीत ही हैं। जितनी जिम्मेदारी केंद्र की है, उतनी ही राज्यों की भी कि नीति आयोग आपसी सहयोग और समन्वय का मंच बने।