सत्ता का मनमाना इस्तेमाल कितना विकराल रूप धारण कर चुका है, इसका ताजा और घिनौना प्रमाण है मुंबई महानगर पालिका के दस्ते की ओर से अभिनेत्री कंगना रनोट के कार्यालय में की गई तोड़फोड़। यह तोड़फोड़ सिर्फ इसीलिए की गई, क्योंकि उनके कुछ बयान महाराष्ट्र सरकार को रास नहीं आए। पहले शिवसेना नेताओं ने कंगना के खिलाफ बेहूदे बयान दिए और जब इतने से भी संतुष्टि नहीं मिली तो महाराष्ट्र सरकार ने बीएमसी के अतिक्रमण विरोधी दस्ते को उनके दफ्तर को ढहाने भेज दिया। चूंकि मकसद हर हाल में कंगना को सबक सिखाना था, इसलिए निर्धारित तौर-तरीकों को धता बताया गया।

शिवसेना के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार बीएमसी की ओछी हरकत पर अपनी पीठ ठोक सकती है, लेकिन सच तो यह है कि उसने खुद को लोगों की नजरों से गिराने का काम किया है। इस कृत्य से लोकतांत्रिक मूल्यों-मर्यादाओं की धज्जियां उड़ने के साथ ही यह भी साबित हुआ कि हमारे नेताओं में सत्ता का अहंकार किस तरह सिर चढ़कर बोलता है? महाराष्ट्र सरकार अपने से असहमत लोगों को आतंकित करने के लिए जिस तरह किसी भी हद तक जाने को तैयार दिख रही है, वह प्रतिशोध की राजनीति का ऐसा मामला है जो भारतीय लोकतंत्र को कलंकित करने वाला है। विडंबना यह है कि प्रतिशोध की राजनीति का यह इकलौता उदाहरण नहीं।

अपने देश में महाराष्ट्र सरकार सरीखे उदाहरण देखने को मिलते ही रहते हैं। संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थों को सिद्ध करने अथवा अपने राजनीतिक या वैचारिक विरोधियों को तंग करने के लिए सत्ता का बेजा इस्तेमाल करने के मामलों की गिनती करना मुश्किल है। जब ऐसे मामले सामने आते हैं तो कानून के शासन का उपहास उड़ने के साथ ही भारतीय लोकतंत्र की बदनामी भी होती है। कंगना जिस मामले को लेकर चर्चा में आईं, वह अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत का है।

पता नहीं उनकी मौत किन कारणों से हुई, लेकिन यह एक तथ्य है कि इस मामले की जांच भी सस्ती राजनीति से प्रभावित दिखी। इस मामले की जांच को लेकर अलग-अलग राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी तरह से राजनीतिक रोटियां सेंकने का ही काम किया। जैसे कंगना के कार्यालय को बदले की राजनीति के तहत ध्वस्त करने की हरकत की अनदेखी नहीं की जा सकती, वैसे ही सुशांत सिंह राजपूत की मौत के लिए कथित तौर पर जिम्मेदार मानी जा रहीं रिया चक्रवर्ती की नशीले पदार्थों की खरीद-फरोख्त के आरोप में गिरफ्तारी को लेकर उठे सवालों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इन सवालों का चाहे जो जवाब हो, यह बिल्कुल भी ठीक नहीं कि सत्ता में बैठे लोग अपने अधिकारों का मनमाना इस्तेमाल करने में समर्थ बने रहें।