आयकर विभाग की ओर से दी गई यह सूचना कोई बहुत उत्साहित करने वाली नहीं है कि उसने बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम के तहत अब तक 6,900 करोड़ रुपये की संपत्तियां जब्त की हैं। नवंबर 2016 में जब बेनामी संपत्तियों संबंधी अधिनियम में संशोधन किया गया था तो यह माना गया था कि इसके जरिये कालेधन वालों पर शिकंजा कसने में आसानी होगी, लेकिन यदि करीब दो साल बाद लगभग सात हजार करोड़ रुपये की ही बेनामी संपत्ति जब्त की जा सकी है तो फिर इसका मतलब है कि इस तरह की संपत्ति हासिल करने वाले कानूनी कार्रवाई से बचे हुए हैैं।

इसमें संदेह है कि आयकर विभाग की ओर से इस आशय का प्रचार करने से बात बनेगी कि लोग बेनामी संपत्तियों की जानकारी देने के लिए आगे आएं। इसी तरह इसमें भी संदेह है कि ऐसी कोई चेतावनी प्रभावी साबित होगी कि बेनामी संपत्ति अर्जित करने वाले अथवा ऐसी संपत्ति की खरीद-फरोख्त में सहायक बनने वाले दंड का पात्र बनेंगे। यह सही है कि संशोधन के बाद बेनामी कानून कहीं अधिक प्रभावी हो गया है, लेकिन समस्या यह है कि बेनामी संपत्ति का पता लगाना अभी भी मुश्किल है। इस मुश्किल का कारण यह है कि जमीन-जायदाद संबंधी रिकॉर्ड सही तरह से तैयार नहीं किए जा सके हैैं। यह आवश्यक ही नहीं, बल्कि अनिवार्य है कि जमीन-जायदाद संबंधी दस्तावेजों का कंप्यूटरीकरण किया जाए। कालेधन और भ्रष्टाचार पर अंकुश तभी लग सकता है जब चल के साथ अचल संपत्ति की छानबीन भी आसान हो सके। यह ठीक नहीं कि बेनामी संपत्ति खरीदना अभी भी आसान बना हुआ है।

बेनामी संपत्तियों की जब्ती से जुड़े मामलों में यही अधिक देखने में आ रहा है कि आम तौर पर वही लोग आयकर विभाग की गिरफ्त में आ पा रहे हैैं जो किसी घपले-घोटाले में फंस जा रहे हैैं। आयकर विभाग की यह अपेक्षा तो उचित है कि आम लोग बेनामी संपत्ति की बुराई को खत्म करने में सरकार का सहयोग करें, लेकिन ऐसा तो तभी हो सकता है जब आम लोगों को इस बारे में कुछ पता हो। बेनामी संपत्ति भ्रष्टाचार का तो जरिया हैै ही, कालेधन को खपाने-छिपाने का स्रोत भी है। बेनामी संपत्ति वाले तमाम लोग राजनीति में भी सक्रिय हैैं। नेताओं के साथ नौकरशाह भी बेनामी संपत्ति के जरिये अपनी काली कमाई ठिकाने लगाते हैैं।

यदि सरकार बेनामी संपत्ति वालों पर सचमुच शिकंजा कसना चाहती है तो उसे आयकर विभाग को आवश्यक संसाधनों से लैस करने के साथ ही यह भी देखना होगा कि बेनामी संपत्तियों के मामलों की सुनवाई के लिए न्यायिक प्राधिकरण अपनी पूरी क्षमता के साथ काम करने में सक्षम हो। अभी ऐसी स्थिति नहीं है और इसी कारण करोड़ों रुपये की संपत्तियों की जब्ती के मामले अधर में अटके हैैं। नए बेनामी कानून के तहत सरकार को एक प्राधिकरण का गठन करना था, लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हो सका है। इसके चलते बेनामी संपत्ति जब्ती के मामले तेजी से नहीं निपट पा रहे हैैं। अभी इन मामलों का निपटारा मनी लांड्रिंग निरोधक कानून संबंधी जो प्राधिकरण कर रहा है वह पहले से ही काम के बोझ से दबा है।