पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने भारत से चीनी और कपास मंगाने के अपनी ही कैबिनेट के फैसले पर रोक लगाकर केवल यही नहीं साबित किया कि वह यू-टर्न लेने में माहिर हैं, बल्कि यह भी जता दिया कि भारत को अपने इस पड़ोसी देश पर भरोसा करने के पहले सौ बार सोचना चाहिए। इमरान ने अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारने वाला यह फैसला करके उन उम्मीदों को ध्वस्त करने का ही काम किया है, जो संघर्ष विराम पर नए सिरे से सहमति बनने और फिर भारतीय प्रधानमंत्री की ओर से पाकिस्तान दिवस पर भेजे गए शुभकामना संदेश के जवाब में सामने आई चिट्ठी से उपजी थीं। हालांकि इमरान खान ने इस चिट्ठी में जिस तरह जम्मू-कश्मीर का जिक्र किया, उससे यही संकेत मिला था कि पाकिस्तान अपनी आदत से बाज नहीं आएगा, फिर भी भारत से चीनी और कपास आयात करने के उसके फैसले से यह प्रतीति हुई थी कि मजबूरी में ही सही, उसे अक्ल आ गई है। खुद का भला करने वाले फैसले को पलटकर पाकिस्तान ने यही जाहिर किया कि उसे भारत से नफरत के चलते कुछ सही सूझता ही नहीं। यह फैसला करके पाकिस्तान ने एक ओर जहां अपने टेक्सटाइल उद्योग पर एक और चोट की, वहीं दूसरी ओर किसी अन्य देश से चीनी खरीदने में अतिरिक्त विदेशी मुद्रा खर्च होने की चिंता भी नहीं की। इसे ही कहते हैं विनाशकाले विपरीत बुद्धि।

यह अच्छा हुआ कि भारत ने पाकिस्तान के मूर्खतापूर्ण फैसले की कोई परवाह नहीं की। उसे करनी भी नहीं चाहिए, क्योंकि पाकिस्तान से व्यापार करना उसकी प्राथमिकता में नहीं। सच तो यह है कि भारत को यह मानकर चलना चाहिए कि उसे पाकिस्तान के बगैर ही काम चलाना होगा। पाकिस्तान की अनदेखी और उपेक्षा ही उसके होश ठिकाने लगाने का काम करेगी, लेकिन ऐसा करते हुए भारत को अपनी सुरक्षा के लिए सदैव सतर्क रहना होगा। पाकिस्तान न पहले भरोसे काबिल था और न अब है। पाकिस्तानी विदेश मंत्री की मानें तो भारत से तब तक कारोबार नहीं किया जाएगा, जब तक अनुच्छेद 370 को बहाल नहीं किया जाता। यह तो कभी नहीं होने वाला। दुनिया की कोई ताकत इस अनुच्छेद की वापसी नहीं करा सकती। यदि बिगड़ैल पाकिस्तान यह सोच रहा है कि भारत उससे व्यापार करने के लोभ में उसे जम्मू-कश्मीर में कोई रियायत दे देगा तो यह उसका दिवास्वप्न ही है। इस दिवास्वप्न के पीछे कश्मीर हड़पने और भारत से बदला लेने की फितरत है। वास्तव में इसी कारण पाकिस्तानी सेना उन आतंकी संगठनों को पालती-पोसती है, जो भारत के लिए खतरा बने हुए हैं। हैरत नहीं कि उसी ने इमरान खान को यू-टर्न लेने को बाध्य किया हो।