पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड ने इस बार बहुत कम समय में बारहवीं का नतीजा घोषित कर बेशक रिकार्ड कायम किया है, लेकिन नतीजे यह बताते हैं कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर लगातार गिर रहा है। सबसे चिंता का विषय तो साइंस को लेकर है। कॉमर्स में जहां करीब 84 फीसद विद्यार्थी पास हुए हैं वहीं, साइंस में मात्र 58 फीसद विद्यार्थी पास हुए हैं। पिछले साल सरकार ने साइंस में ज्यादा से ज्यादा विद्यार्थी प्रवेश लें इसके लिए भरपूर कोशिश की थी, लेकिन इतने बड़े पैमाने पर विद्यार्थियों के फेल होने से चिंता बढ़ जाती है। ह्यूमैनिटीज ग्रुप में भी विद्यार्थियों ने बेहतर प्रदर्शन नहीं किया है और मात्र 65 फीसद ही पास हुए हैं। सबसे ज्यादा हैरानीजनक मेरीटोरियस स्कूलों का प्रदर्शन है। 37 बच्चों की टॉप टेन सूची में तीन मैरिटोरियस व दो सरकारी स्कूलों के ही बच्चे हैं। यही नहीं, 13 जिलों के सरकारी स्कूल टॉप टेन की सूची से स्थान ही नहीं बना पाए हैं। नौ जिलों से सरकारी स्कूलों के दो विद्यार्थी, मेरिटोरियस के तीन और 32 विद्यार्थी प्राइवेट व एफलिएटेड स्कूलों के हैं।

सीमावर्ती जिलों का नतीजा भी बहुत खराब है। सीमावर्ती जिन पांच जिलों का परिणाम बीते वर्ष 70 फीसद से ऊपर था, इस बार नकल पर सख्ती से 30 फीसद तक गिर गया है। सरकारी स्कूलों के खराब नतीजों के कई कारण हैं। प्रदेश के कई स्कूलों में जहां बुनियादी सुविधाओं का अभाव है वहीं, शिक्षकों के सैकड़ों पद खाली पड़ी हैं। इसके अलावा कई बार शिक्षकों को दूसरे कार्यों में लगा दिया जाता है। कई स्कूलों में मुख्याध्यापक भी नहीं हैं। साइंस विषय में ज्यादा बच्चों के फेल होने के पीछे यह भी वजह है कि कई स्कूलों में साइंस के शिक्षकों का अभाव है। प्रदेश सरकार को यह देखना होगा कि शिक्षा का स्तर कैसे सुधारा जाए। खाली पड़े शिक्षकों व मुख्याध्यापकों के पदों को यथाशीघ्र भरने के साथ ही स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं पर भी ध्यान देने की जरूरत है।

[ स्थानीय संपादकीय: पंजाब ]