नई शिक्षा नीति पर अमल के क्रम में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की ओर से विश्वविद्यालयों से संबद्ध कॉलेजों को स्वायत्त करने की प्रक्रिया शुरू किया जाना यह बताता है कि केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय अपनी इस नीति को हकीकत में बदलने को लेकर प्रतिबद्ध है। इस प्रतिबद्धता का परिचय दिया भी जाना चाहिए, क्योंकि नई शिक्षा नीति 34 साल बाद आई है और इस लंबे कालखंड में विश्वविद्यालयों की शिक्षा में खासी गिरावट देखने को मिली है। इस गिरावट के कई कारण हैं, लेकिन एक बड़ा कारण तमाम विश्वविद्यालयों से जरूरत से ज्यादा कॉलेजों का संबद्ध होना भी है। कुछ दिन पहले एक ऐसे विश्वविद्यालय का जिक्र खुद शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने किया था जिससे आठ सौ कॉलेज संबद्ध थे।

शिक्षा मंत्री के अनुसार इस विश्वविद्यालय के कुलपति तो इन कॉलेजों के प्राचार्य के नाम से भी परिचित नहीं होंगे। यह स्वाभाविक है, लेकिन ऐसे विश्वविद्यालय अपवाद भर नहीं हैं। एक अनुमान के अनुसार देश में एक दर्जन से अधिक विश्वविद्यालय ऐसे हैं जिनसे पांच सौ से ज्यादा कॉलेज संबद्ध हैं। कोई भी विश्वविद्यालय इतने अधिक कॉलेजों के कामकाज की निगरानी नहीं कर सकता और न ही उनमें पठन-पाठन की गुणवत्ता को बनाए रख सकता है। हैरत नहीं कि इसी कारण देश में तमाम विश्वविद्यालय केवल डिग्री बांटने का जरिया भर बनकर रह गए हैं। इस स्थिति को उच्च शिक्षा के नाम पर की जाने वाली खानापूरी के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की ओर से जारी निर्देश के अनुसार अब कोई विश्वविद्यालय 300 से अधिक कॉलेजों को संबद्ध नहीं कर सकता। वास्तव में यह संख्या भी ज्यादा है। किसी विश्वविद्यालय के लिए इतने अधिक कालेजों का सही तरह नियमन आसान नहीं। कॉलेजों को स्वायत्त करने की पहल सही दिशा में है। देश में कई कॉलेज ऐसे हैं जिनकी प्रतिष्ठा उस विश्वविद्यालय से अधिक है जिनसे वे संबद्ध हैं। इन कॉलेजों में पठन-पाठन का स्तर भी बेहतर है। ऐसे कॉलेजों को स्वायत्तता देते समय उन पर यह जिम्मेदारी भी डाली जाए तो बेहतर कि वे अन्य कॉलेजों की गुणवत्ता सुधारने का काम करें।

अच्छे कॉलेजों की विशेषज्ञता का लाभ उठाया ही जाना चाहिए, लेकिन इस तरह कि खुद उनकी गुणवत्ता पर कोई असर न पड़े। इसके साथ ही इसके प्रति सतर्क रहा जाना चाहिए कि ऐसे कॉलेज स्वायत्तता का तमगा न हासिल करने पाएं जिनका शैक्षिक स्तर ठीक नहीं। नि:संदेह यह तभी संभव हो पाएगा जब स्वायत्तता की पात्रता संबंधी शर्तों पर सही तरह अमल सुनिश्चित किया जाएगा। यह एक कठिन काम है, क्योंकि तमाम कॉलेज ऐसे भी हैं जिनकी रुचि शैक्षिक स्तर सुधारने में है ही नहीं।