बेंगलुरु के पास लड़ाकू विमान मिराज-2000 का दुर्घटनाग्रस्त होना और उसमें वायु सेना के दो अनुभवी पायलटों की मौत हो जाना एक बेहद गंभीर घटना है। आवश्यक केवल यह नहीं है कि इस घटना पर गंभीरता का परिचय दिया जाए, बल्कि यह भी है कि उन कारणों की तह तक सचमुच जाया जाए जिनके चलते देश ने एक लड़ाकू विमान के साथ अपने दो पायलट भी खो दिए। एक साथ दो पायलटों की मौत इसलिए बड़ा नुकसान है, क्योंकि लडाकू विमानों के पायलट बेहद गहन प्रशिक्षण के बाद तैयार होते हैैं। चूंकि उनके प्रशिक्षण में समय के साथ तमाम संसाधन भी लगते हैैं इसलिए परीक्षण उड़ान के दौरान उनकी मौत राष्ट्रीय क्षति है।

नि:संदेह लडाकू विमानों के साथ कछ न कुछ जोखिम रहता है, लेकिन आम तौर पर परीक्षण उड़ानों के दौरान कोई गड़बड़ी होने पर पायलट खुद को बचा लेते हैैं। बेंगलुरु में ऐसा नहीं हो सका। यहां मिराज-2000 लड़ाकू विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद यदि उसे उन्नत करने वाली हिंदुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड यानी एचएएल रक्षा विशेषज्ञों और पूर्व सैन्य अधिकारियों के साथ आम लोगों के निशाने पर आ गई है तो यह स्वाभाविक है। अगर यह माना जा रहा है कि एचएएल की खामी परीक्षण उड़ान पर निकले पायलटों पर गाज बनकर गिरी तो इसके लिए यह सरकारी कंपनी अपने अलावा अन्य किसी को दोष नहीं दे सकती।

लड़ाकू विमानों की मरम्मत करने और उन्हें उन्नत बनाने में एचएएल का रिकार्ड बहुत ही खराब है। यह वही एचएएल है जिसकी तथाकथित उपेक्षा का रोना कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी रोते रहते हैैं। क्या राफेल सौदे को विवादास्पद बताने की धुन में एचएएल की कामयाबी और महानता के गुण गा रहे राहुल गांधी मिराज के दुर्घटनाग्रस्त होने पर कुछ बोलेंगे? क्या उन्हें यह अहसास हो पा रहा है कि वे अपने संकीर्ण राजनीतिक फायदे के लिए जिस एचएएल को एक मोहरा बना रहे हैैं उसका कामकाज बेहद दयनीय है?

संकीर्ण राजनीतिक हितों के फेर में एचएएल की नाकामियों की अनदेखी करना राष्ट्रीय हितों को जानबूझकर चोट पहुंचाने के अलावा और कुछ नहीं। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि मिराज हादसे में दो पायलटों के मारे जाने की घटना की जांच के आदेश दे दिए गए हैैं, क्योंकि इस तरह की तमाम जांच पहले भी हो चुकी है और नतीजा शून्य है। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि चंद दिन पहले उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में जो जगुआर विमान नष्ट हुआ था वह भी एचएएल ने उन्नत किया था।

एचएएल की ओर से तैयार अथवा उन्नत किए गए विमान जिस तरह हादसे का शिकार होते रहते हैैं उसे देखते हुए किसी को इस सवाल का जवाब देना ही होगा कि आखिर इस सरकारी कंपनी के दोयम दर्जे के कामकाज की अनदेखी कब तक की जाती रहेगी? यह अपेक्षाओं पर खरा न उतर पाने वाली सरकारी कंपनियों के बेजा बचाव की प्रवृत्ति का ही परिणाम है कि रक्षा सामग्री के उत्पादन के मामले में भारत का प्रदर्शन बहुत ही गया-बीता है। अब जब रक्षा विशेषज्ञों के साथ वायु सेना प्रमुख भी एचएएल के कामकाज से संतुष्ट नहीं तब फिर यह जरूरी है कि नीति-नियंता चेत जाएं।