यदि रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति की समीक्षा के बाद ब्याज दरों में बदलाव न करने के नतीजे पर पहुंचा तो यह स्वाभाविक ही है। फिलहाल हालात ऐसे नहीं कि रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति में कुछ हेरफेर करने के कदम उठा सकता। इसका एक बड़ा कारण मुद्रास्फीति में वृद्धि की आशंका है। वर्तमान परिस्थितियों में रिजर्व बैंक को इसकी चिंता करनी ही होगी कि मुद्रास्फीति नियंत्रण में बनी रहे। मौद्रिक नीति की समीक्षा के बाद रिजर्व बैंक के गवर्नर ने यह उम्मीद जताई कि आने वाले समय में अर्थव्यवस्था में सकारात्मक वृद्धि देखने को मिल सकती है। यह उद्योग-व्यापार जगत को उत्साहित करने और उसकी उम्मीद बढ़ाने वाला वक्तव्य है। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि रिजर्व बैंक के गवर्नर ने जीडीपी दर में गिरावट के अनुमान को संशोधित किया है। इससे भी लगता है कि अर्थव्यवस्था जल्द ही पटरी पर आ सकती है, लेकिन यह तभी होगा जब यह सुनिश्चित किया जाएगा कि सुधार के कदम अधिक से अधिक लाभ देने वाले हों। इसके लिए रिजर्व बैंक के साथ-साथ वित्त मंत्रालय को भी अपने हिस्से की जिम्मेदारी का निर्वाह सतर्कता के साथ करना होगा। यह ठीक है कि कोरोना महामारी के कारण अर्थव्यवस्था के समक्ष जो संकट उत्पन्न हुआ है उसका सामना करने के लिए एक के बाद एक कई उपाय किए गए हैं, लेकिन उनके समग्र असर में समय लगेगा।

यह सही समय है जब उन सब रियायतों के असर की समीक्षा की जाए जो इस कोरोना काल में अर्थव्यवस्था को संकट से उबारने के लिए घोषित की गई थीं। ऐसा करते समय सरकार को इस पर विशेष ध्यान देना होगा कि वे उद्योग-धंधे कैसे तेजी से आगे बढ़ें जो अर्थव्यवस्था को गति देने के साथ-साथ रोजगार के अवसरों को बढ़ाने में भी सहायक हैं। यह आवश्यक ही नहीं, बल्कि अनिवार्य है कि अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए रियल एस्टेट और टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों को सही प्रोत्साहन मिल सके। इससे रोजगार की समस्या का समाधान करने में आसानी होगी। इस सबके अलावा इस ओर भी ध्यान देना आवश्यक है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को बल देने के लिए चीन के उत्पादों और उसकी कंपनियों पर जो पाबंदियां लगाई गई थीं उनके वांछित परिणाम दिख रहे हैं या नहीं।

जब यह माना जा रहा है कि इन पाबंदियों से दीर्घकालिक रूप से देश की अर्थव्यवस्था सशक्त होगी तब यह आवश्यक है कि उनके असर की नियमित निगरानी की जाए। नि:संदेह इस समय कोरोना महामारी के कारण जिस तरह की असामान्य परिस्थितियां हैं उनमें रिजर्व बैंक, भारत सरकार और साथ ही उद्योग-व्यापार जगत को मिलकर ऐसी राह निकालनी होगी जिससे अर्थव्यवस्था की चुनौतियों का सामना किया जा सके।