यह राहत भरी खबर है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने यह घोषणा कर दी कि भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान को रिहा कर दिया जाएगा। पाकिस्तानी संसद में इस आशय की घोषणा करते हुए उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि वह ऐसा शांति की पहल के तौर पर करेंगे। यह सही है कि पाकिस्तान जेनेवा संधि का पालन कर रहा है, लेकिन यह मानने का तो सवाल ही नहीं उठता कि वह शांति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखा रहा है। अगर पाकिस्तान शांति के प्रति तनिक भी समर्पित होता तो वह जैश ए मुहम्मद जैसे आतंकी संगठन को संरक्षण देने के साथ ही ऐसा न करने का बहाना नहीं बना रहा होता।

यदि इमरान खान और उनका नया पाकिस्तान शांति का सचमुच पक्षधर हैं तो उसे जैश सरगना मौलाना मसूद अजहर को उसके सुरक्षित ठिकाने से निकालकर भारत के हवाले करना चाहिए। उसे जैश और लश्कर सरीखे आतंकी संगठनों पर पाबंदी लगाने का स्वांग करना भी छोड़ना चाहिए। वह एक अर्से से न केवल यही कर रहा है, बल्कि दुनिया से छल भी कर रहा है। इसी कारण अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस आदि देशों को बार-बार यह कहना पड़ रहा कि वह अपने यहां के आतंकी ढांचे को नष्ट करे और फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स उसे ग्रे सूची से बाहर नहीं कर रहा।

हैरत नहीं कि अभिनंदन को रिहा करने के फैसले के पीछे पाकिस्तान का मूल मकसद दुनिया को अपना नकली चेहरा दिखाना और अंतरराष्ट्रीय दबाव से मुक्त होना हो। एक अन्य मकसद भारत के आक्रामक तेवरों से पिंड छुड़ाना भी हो सकता है। सच्चाई जो भी हो, भारत को उसके इस नए झांसे में बिल्कुल नहीं आना चाहिए कि वह शांति का संदेश देने के लिए भारतीय पायलट को छोड़ने जा रहा है।

अभिनंदन की वापसी की प्रतीक्षा के साथ हम भारतीयों को इसका भी भान होना चाहिए कि उन्होंने पुराने माने जाने वाले युद्धक विमान मिग-21 के जरिये कहीं अधिक उन्नत किस्म के पाकिस्तानी लड़ाकू विमान एफ-16 को ध्वस्त करने का जो शौर्य दिखाया वह भारतीय वायुसेना और उसके पायलटों के युद्ध कौशल का एक ऐसा अप्रतिम प्रमाण है जिसे पाकिस्तान आसानी से नहीं भूल सकता। भारत को ऐसे जतन जारी रखने चाहिए जिससे पाकिस्तान इस भारतीय योद्धा के पराक्रम के साथ यह भी न भूल सके कि अगर उसने अपने आतंकियों के सहारे उसे तंग करने का सिलसिला कायम रखा तो बालाकोट दोहराया जा सकता है। पाकिस्तान जब तक सुधरता नहीं तब तक उसे दंडित करने का कोई मौका छोड़ना नहीं चाहिए।

नि:संदेह वह भारत की आक्रामकता से सहमा है, लेकिन अभी ऐसे कोई संकेत नहीं कि वह सुधरने के लिए तैयार है। अच्छा हो कि इस बात को हमारे वे राजनीतिक दल भी समझें जो राजनीतिक कारणों से ऐसे कठिन समय में भी एकजुटता का परिचय देने में हीलाहवाली कर रहे हैं। अगर इस समय भी दुनिया को राजनीतिक तौर पर एकजुट होने का संदेश नहीं दिया जाएगा तो कब दिया जाएगा? यह वह समय है जब राजनीतिक लाभ-हानि से अधिक महत्ता देश के मान-सम्मान को दी जानी चाहिए। अफसोस कि यह सामान्य सी बात रेखांकित करने की जरूरत पड़ रही है।