आखिरकार पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को यह समझ आया कि किसान संगठनों का आंदोलन राज्य के लिए मुसीबत बन गया है। उन्होंने इन संगठनों से कहा कि यदि उन्हें आंदोलन करना है तो वे हरियाणा और दिल्ली जाएं, क्योंकि उसके कारण राज्य को नुकसान हो रहा है। क्या किसान संगठनों के हरियाणा और दिल्ली जाकर आंदोलन करने से इन राज्यों में समस्याएं नहीं पैदा होंगी? सवाल यह भी है कि वह कितने और प्रदर्शनकारियों को दिल्ली भेजेंगे? ध्यान रहे कि दिल्ली के सीमांत इलाकों में किसान संगठनों की ओर से दिया जा रहा धरना पहले से ही लोगों के लिए परेशानी का कारण बना हुआ है। हालांकि इससे किसान संगठन भी अवगत हैं, लेकिन वह अपनी जिद छोड़ने को तैयार नहीं। आखिर अमरिंदर सिंह जिस आंदोलन को अपने राज्य के लिए ठीक नहीं मान रहे, उसे दूसरे राज्यों में क्यों ठेलना चाहते हैं? अच्छा होता कि वह यह कहने का साहस जुटाते कि किसान संगठन पंजाब के साथ अन्यत्र भी अपना आंदोलन समाप्त करें, क्योंकि हर कहीं वह आम लोगों के लिए मुसीबत बनने के साथ आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियों के लिए बाधाएं खड़ी कर रहा है।

किसान संगठनों का आंदोलन एक ओर हरियाणा में बहादुरगढ़ के कारखानों के लिए मुसीबत बना हुआ है तो दूसरी ओर उसके चलते पंजाब में कई औद्योगिक प्रतिष्ठान बंद हो चुके हैं। इसके चलते सैकड़ों लोगों की नौकरियां भी जा चुकी हैं। किसान संगठन भले ही किसानों के साथ नौजवानों के हितों की रक्षा का दम भर रहे हों, लेकिन सच यह है कि वे उनके हितों को गंभीर नुकसान पहुंचा रहे हैं। अमरिंदर सिंह की मानें तो किसान संगठन पंजाब में सौ से ज्यादा स्थानों पर आंदोलनरत हैं और इसके कारण राज्य की आर्थिक स्थिति पर बुरा असर पड़ रहा है। इस सच से इन्कार नहीं, लेकिन अमरिंदर सिंह को इसका आभास तो तभी हो जाना चाहिए था, जब वह किसान संगठनों को धरने-प्रदर्शन के लिए उकसाने के साथ उनका खुला समर्थन भी कर रहे थे। उन्होंने किस तरह किसान संगठनों को उकसाकर दिल्ली भेजा, यह उनके इस बयान से साबित होता है कि वे उनकी वजह से ही दिल्ली में डटे हुए हैं। उन्होंने यह स्पष्ट भी किया कि यदि वह आंदोलनकारियों को पंजाब में रोक देते तो वे दिल्ली की सीमाओं पर नहीं पहुंच पाते। उनका यह बयान यही बताता है कि नेतागण अपने संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थो की पूíत के लिए किस तरह देश के लिए संकट बनने वाले आंदोलनों को हवा देते हैं। बेहतर हो कि अब किसान संगठन भी यह समङों कि उनका आंदोलन आम आदमी को तंग करने के साथ अर्थव्यवस्था को भी चोट पहुंचा रहा है।