कहावत है कि इतिहास से सबक न सीखने वाले लोग वही इतिहास दोहराने को अभिशप्त होते हैं। भ्रष्टाचार के बुरे हश्र के बारे में आइएएस गौतम गोस्वामी से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद तक के प्रकरण सामने हैं, पर ऐसा बिल्कुल नहीं लगता कि इन प्रसंगों से बिहार के नेताओं या अफसरों ने कोई सबक लिया। ताजा प्रकरण औरंगाबाद के डीएम कंवल तनुज का है जिन पर एनटीपीसी के लिए जमीन अधिग्रहण करवाने में कई करोड़ रुपये के लेनदेन का आरोप है। सीबीआइ ने उनके तमाम ठिकानों पर छापे डालकर साक्ष्य संकलित किए हैं। कुछ दिन पहले ही एक अन्य आइएएस दीपक आनंद के भी घर और अन्य ठिकानों पर छापेमारी में अनुचित ढंग से अर्जित अकूत संपत्ति का पर्दाफाश हो चुका है।

अखंड बिहार में पटना के डीएम रहे झारखंड में सेवारत एक अन्य आइएएस प्रदीप कुमार के भी भ्रष्टाचार का हाल में खुलासा हुआ है। ये वो मामले हैं जिनमें करोड़ों रुपये का लेनदेन हुआ जबकि लाख-दो लाख रुपये घूस मांगने वाले छोटे अधिकारी तो आए दिन धरे-पकड़े जा रहे हैं। ऐसा लगता है कि हर नेता और अधिकारी जैसे भी संभव हो, जल्द से जल्द कुबेर का खजाना अपने कब्जे में कर लेना चाहता है। भ्रष्टाचार की यह अंधी दौड़ उस वक्त भी बदस्तूर जारी है जब ऐसे कारनामों के लिए सूबे के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों लालू प्रसाद और डा.जगन्नाथ मिश्र समेत कई बड़े अधिकारी और कारोबारी जेल की हवा खा रहे हैं। सीबीआइ और आयकर सरीखी केंद्रीय एजेंसियों की सराहना की जानी चाहिए जो एक के बाद एक भ्रष्टाचारियों को बेनकाब कर रही हैं। उच्च वेतन और प्रतिष्ठा प्राप्त आइएएस कैडर के अफसरों की धनलिप्सा चिंताजनक है। यह मेड़ के खेत को खाने जैसी नौबत है। पारदर्शी सुशासन मुहैया कराना आइएएस कैडर की जिम्मेदारी है। जब उसी कैडर के अफसर भ्रष्टाचार की दौड़ में शामिल हो जाएं तो आगे दूर तक अंधेरा पसर जाता है। आईएएस एसोसिएशन और अन्य प्रशासनिक सेवा संघों का फर्ज है कि वे अपने कैडर में भ्रष्टाचार के खिलाफ चर्चा छेड़ें और भ्रष्टाचार में लिप्त अफसरों का साथ न देने का संकल्प लें।

[ स्थानीय संपादकीय: बिहार ]