लंबे समय तक राजनीतिक अस्थिरता से जूझते कर्नाटक में आखिरकार येदियुरप्पा के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बन गई। येदियुरप्पा ने चौथी बार कर्नाटक की सत्ता संभाली है। चूंकि वह अभी तक एक बार भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके हैं इसलिए यह सवाल उनका पीछा कर रहा है कि आखिर उनकी सरकार कब तक चलेगी? यह सवाल इसलिए भी उठ रहा है, क्योंकि भाजपा की सरकार तब बन सकी जब कांग्रेस और जद-एस के एक दर्जन से अधिक विधायकों ने इस्तीफा दिया।

भाजपा को आगे इन विधायकों को उपकृत करना पड़ सकता है और ऐसी स्थिति में उसके अपने नेताओं में असंतोष व्याप्त हो सकता है। स्पष्ट है कि येदियुरप्पा सरकार को न केवल अस्थिरता की आशंका को दूर करना होगा, बल्कि जनता की अपेक्षाओं पर खरा भी उतरना होगा। यह आसान काम नहीं, क्योंकि कुमारस्वामी सरकार ने कुल मिलाकर राज्य का अहित ही किया है। वास्तव में वह बनी ही इसलिए थी ताकि उसके और साथ ही कांग्रेस के संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थो की पूर्ति हो सके।

कुमारस्वामी सरकार के पतन और येदियुरप्पा सरकार के गठन के बाद जद-एस और कांग्रेस की ओर से ये संकेत दिए जा रहे हैं कि दोनों दलों की दोस्ती भी समाप्त होने जा रही है। ऐसे संकेत यही बताते हैं कि जद-एस और कांग्रेस की दोस्ती केवल सत्ता की साझेदारी के लिए ही थी। अब यह और अच्छे से स्पष्ट हो रहा है कि कर्नाटक में 14 महीने पहले कुमारस्वामी सरकार के गठन के बाद तमाम विपक्षी दलों की ओर से एकजुटता का जो प्रदर्शन किया गया था वह वास्तव में अवसरवादी राजनीति का उदाहरण ही था। शायद इसी नकली एकजुटता के कारण ही राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन नहीं बन सका।

कांग्रेस और जद-एस ने जो कुछ कर्नाटक में किया वही उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा ने भी किया। इसके पहले बिहार में जद-यू और राष्ट्रीय जनता दल ने भी ऐसा ही किया था। ये बेमेल गठबंधन थे और इन्हें कामयाब नहीं होना था। समस्या यह है कि ऐसे बेमेल और अवसरवादी गठबंधन बनने का सिलसिला कायम रह सकता है, क्योंकि कई राजनीतिक दलों के लिए सत्ता ही सब कुछ है। इसी कारण आज देश के अधिकांश राजनीतिक दलों की विचारधारा का कोई अता-पता नहीं।

इसे राजनीति नहीं कहा जा सकता कि राजनीतिक दल सत्ता पाने के लिए एक साथ आ जाएं और सत्ता से वंचित होने पर छिटक जाएं। यदि यह सोचा जा रहा है कि दलबदल रोधी नियम और सख्त करने से अवसरवादी राजनीति का सिलसिला थम जाएगा तो यह सही नहीं। यह सिलसिला तो तब थमेगा जब मूल्यों और मर्यादा की राजनीति को महत्व मिलेगा।

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