इंदौर में भाजपा विधायक आकाश विजयवर्गीय की ओर से नगर निगम के कर्मियों से मारपीट का मामला शांत भी नहीं हुआ था कि महाराष्ट्र में कांग्रेस के विधायक नीतेश राणे की ओर से एक इंजीनियर से बदसलूकी का मामला सामने आ गया। इन दोनों घटनाओं के साथ तेलंगाना की उस शर्मनाक और भयावह घटना को भी नहीं भुलाया जा सकता जिसमें टीआरएस विधायक के भाई ने भारी भीड़ जुटाकर वन विभाग की महिला अधिकारी को घेरकर पीटा था। ये तीनों मामले लोकतंत्र, राजनीति और जनप्रतिनिधियों को शर्मिदा करने के साथ ही विधि के शासन का उपहास उड़ाने वाले हैं। इन तीनों मामलों में यह देखने को मिला कि जो सरकारी कर्मचारी जनप्रतिनिधियों की हिंसा का शिकार बने वे अपना काम करने में लगे हुए थे। इंदौर में नगर निगम कर्मचारी एक जर्जर मकान को गिराने गए थे, लेकिन भाजपा विधायक को यह रास नहीं आया और वह उन्हें बल्ला लेकर पीटने लगे।

तेलंगाना के आदिलाबाद में टीआरएस विधायक के भाई एवं जिला परिषद के अध्यक्ष कोनेरू कृष्णा ने वन विभाग की जमीन पर अवैध कब्जा हटाने गईं महिला वन अधिकारी पर लाठियां बरसाकर उन्हें मरणासन्न कर दिया। महाराष्ट्र में मुंबई-गोवा हाईवे के पास कांग्रेसी विधायक ने अपने समर्थकों के साथ एक इंजीनियर को घेरकर पहले उन पर कीचड़ उड़ेला और फिर उन्हें खंभे से बांधने की कोशिश की। क्या ऐसी हरकतों को गुंडागर्दी के अलावा और कुछ कहा जा सकता है? आखिर जब जनप्रतिनिधि इस तरह खुली गुंडागर्दी करेंगे तब फिर आम लोगों से यह अपेक्षा कैसे की जा सकती है कि वे कानून के शासन के प्रति समर्पित रहें?

यह महज दुर्योग नहीं हो सकता कि बीते कुछ समय से ऐसे मामले बढ़े हैं जिनमें भीड़ किसी न किसी बहाने एकत्रित होकर अराजकता फैलाने अथवा सरकारी कामकाज में अड़ंगा लगाने का काम करती है। यह हमारे नीति-नियंताओं के लिए गंभीर चिंता का विषय बनना चाहिए कि अराजक भीड़ केवल कानून हाथ में लेने का ही काम नहीं कर रही, बल्कि वह सरकारी कर्मियों, डॉक्टरों और यहां तक कि पुलिस को भी निशाना बना रही है। क्या इससे खराब बात और कोई हो सकती है कि कानून की रक्षक पुलिस ही भीड़ की अराजकता का शिकार हो जाए?

यदि लोकतंत्र को भीड़तंत्र में तब्दील होने से रोकना है तो फिर भीड़ की हिंसा के सिलसिले को रोकना ही होगा। आवश्यक हो तो नए नियम-कानून बनाने में संकोच नहीं किया जाना चाहिए। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि इंदौर, आदिलाबाद और महाराष्ट्र में जिन जनप्रतिनिधियों ने गुंडागर्दी की उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जरूरी यह है कि उन्हें अपने किए की सजा मिले और जल्द से जल्द मिले।

आकाश विजयवर्गीय, कोनेरू कृष्णा और नीतेश राणे जैसे अराजक जनप्रतिनिधियों और उनके समर्थकों को सजा देकर ही यह संदेश दिया जा सकता है कि अराजकता को किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। क्या यह अजीब नहीं कि जिन जनप्रतिनिधियों पर नियम-कानूनों के पालन का दायित्व है वे ठीक इसका उलट करने में लगे हुए हैं? किसी को भी इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि वह भीड़ के सहारे अभद्र अथवा अराजक हरकतें करके बच निकल सकता है।