स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने शुक्रवार को 18 ब्लड कलेक्शन एंड ट्रांसपोर्टेशन वैन (बीसीटीवी) 18 मंडलों के लिए रवाना किया। ये वैन ग्रामीण क्षेत्रों से स्वैच्छिक रक्तदान के माध्यम से रक्त का संग्रह करेंगी। पर महत्वपूर्ण जो बात उन्होंने कही वह यह कि गांव का रक्त न केवल शुद्ध होता है, बल्कि पवित्र भी। शुद्ध और पवित्र इसलिए क्योंकि आज भी गांवों का पर्यावरण साफ है, जीवन सादा है और विचार भी स्वच्छ है। शहर और गांव के बीच यह तुलना करने के पीछे स्वास्थ्य मंत्री का असल मंतव्य क्या है, यह तो वही स्पष्ट कर सकते हैं, किंतु उनके इस वक्तव्य में और भी बहुत कुछ छिपा हुआ है। 1देश में रक्त और रक्त के अव्यवों का भंडारण, रक्तदान और रक्त की उपलब्धता की बात करें तो यह आज भी आवश्यकता से कम है, जबकि सरकारी और गैर सरकारी दोनों ही स्तरों पर काफी प्रयास किए जा रहे हैं। देश और प्रदेश की अपनी-अपनी रक्त नीतियां भी हैं, फिर भी आवश्यकता पूरी नहीं हो पा रही है। कमी की आड़ में कुछ लोगों के धंधे भी खूब-फल फूल रहे हैं लेकिन, इसमें सबसे ज्यादा मुश्किल है कि स्वैच्छिक रक्तदान को अपेक्षित ढंग से प्रोत्साहित नहीं किया जा सकता है। जबकि पेशेवर रक्तदाताओं में तमाम ऐसे हैं जो नशेड़ी होते हैं, नशे की पूर्ति के लिए वे रक्तदान कर पैसे का इंतजाम करते हैं। ऐसे रक्तदाता तमाम बीमारियों के शिकार होते हैं। यानी वह खून खराब होता है। जबकि दूसरी ओर ग्रामीण क्षेत्र आज भी स्वैच्छिक रक्तदान के मामले में काफी पीछे है। उचित जागरूकता के अभाव में ग्रामीणों में यह भ्रम होता है कि रक्तदान से वे कमजोर हो जाएंगे या किसी बीमारी का शिकार हो जाएंगे। मतलब यह कि स्वस्थ और अच्छे रक्त का एक बड़ा स्नोत आज भी अछूता है, इसी स्नोत के उचित उपयोग के लिए बीसीटीवी की पहल हुई है। यह पहल तभी सार्थक और सफल होगी, जब ग्रामीण क्षेत्रों में रक्तदान के प्रति लोगों को प्रोत्साहित करते हुए उन्हें उचित ढंग से जागरूक किया जाएगा। उनके मन से भ्रम दूर करना पड़ेगा। गांवों में जाकर खुद क्षेत्र के सरकारी चिकित्सक को लोगों से नाता जोड़ना पड़ेगा। उन्हें विश्वास दिलाना पड़ेगा। नहीं तो यह पहल भी पिछली कोशिशों की तरह महज दिखावा बनकर रह जाएगी।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]