राजस्थान में महंगाई विरोधी रैली को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने जिस तरह एक बार फिर हिंदुत्व को हिंदू से अलग बताने की कोशिश की उस पर हैरानी नहीं। उन्होंने इसी तरह की कोशिश अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद की उस टिप्पणी के बाद भी की थी जिसमें उन्होंने हिंदुत्व को इस्लामिक स्टेट और बोको हराम सरीखा बताया था। राहुल गांधी के ताजा बयान से यही स्पष्ट हो रहा है कि वह हिंदुत्व को लांछित कर भाजपा एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ-साथ हिंदुओं को भी देश के लिए खतरा बताना चाहते हैं। इस पर संदेह नहीं कि ऐसा करके वह किन लोगों को अपनी ओर आकर्षित करना चाहते हैं।

पहले सलमान खुर्शीद और फिर राहुल गांधी के हिंदुत्व संबंधी बयानों से यदि कुछ स्पष्ट हो रहा है तो यही कि कांग्रेस एक बार फिर भटकाव की राह पर है।यह विचित्र है कि आज जो राहुल गांधी हिंदू और हिंदुत्व में अंतर बताने में लगे हुए हैं वह तब मौन थे जब उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की ओर से देश में हिंदू आतंकवाद का जुमला उछाला जा रहा था। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि संप्रग शासन के समय कांग्रेस के वरिष्ठ मंत्रियों ने किस तरह हिंदू आतंकवाद का हौवा खड़ा करने की कोशिश की थी।

यह भी विस्मृत नहीं किया जा सकता कि स्वयं राहुल गांधी ने एक अमेरिकी राजनयिक से चर्चा करते हुए यह कहा था कि भारत को जैश, लश्कर और हिजबुल मुजाहिदीन सरीखे खूंखार आतंकी संगठनों के बजाय हिंदूवादी संगठनों से खतरा है। ऐसा लगता है कि राहुल फिर से उसी राह पर लौट गए हैं। राहुल गांधी ने हिंदुत्व को हिंदू से अलग साबित करने के लिए जिस प्रकार रामायण, महाभारत, उपनिषद आदि का उल्लेख किया उससे यही प्रमाणित हो रहा है कि न तो उन्हें हिंदू धर्म के बारे में कुछ अता-पता है और न ही उन्होंने इन ग्रंथो का अध्ययन किया है।

राहुल ने जिस तरह हिंदुत्व को हिंदू से अलग बताया और व्याख्यायित किया, क्या वह उसी तरह अन्य पंथों को भी व्याख्यायित करने का काम करेंगे और इस क्रम में ऐसा कुछ कहेंगे कि ईसाई से ईसाइयत से भिन्न है और बौद्ध से बुद्धत्व का कोई नाता नहीं। कांग्रेस राजनीतिक मजबूरीवश कभी-कभी नरम हिंदुत्व की ओर बढ़ने की कोशिश करती दिखती है, लेकिन वामपंथियों और छद्म सेक्युलरवादियों के प्रभाव में पुन: अल्पसंख्यकवाद की राजनीति पर चल निकलती है। राहुल गांधी यही काम कर रहे हैं और यह भी स्पष्ट है कि वह अपने उन नेताओं के विचारों को सुनने-समझने के लिए तैयार नहीं जो यह कह रहे हैं कि कांग्रेस को अपनी मूल विचारधारा पर केंद्रित एवं कायम रहना चाहिए। आज स्थिति यह है कि किसी के लिए भी यह समझना कठिन है कि वस्तुत: कांग्रेस की विचारधारा क्या है और वह किस रास्ते पर जा रही है।