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ब्लर्ब में

शादी बड़ी जिम्मेदारी है, जिसके लिए लड़के व लड़की का मानसिक व शारीरिक रूप से तैयार होना जरूरी है। इसकी अनदेखी बड़े खतरे को आमंत्रण दे सकती है।

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कम उम्र में बच्चों की शादी कर देने से उनके स्वास्थ्य, मानसिक विकास व खुशहाल जीवन प्रभावित होते हैं। सरकार ने इसलिए ही लड़के-लड़कियों की शादी की आयु तय की है, लेकिन फिर भी बाल विवाह के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। समझना होगा कि छोटी उम्र में बच्चों की शादी कई मुश्किलें लेकर आती है। मां, बहू और पत्नी जैसी बड़ी जिम्मेदारियों को निभाना छोटी बच्ची के लिए मुश्किल हो जाता है। अंतत: यह स्थिति उन्हें अलगाव व अवसाद की ओर जाती है। लड़कों के लिए भी यह स्थिति उतनी ही गंभीर है, जितनी लड़कियों के लिए। उन्हें बचपन से ही अपनी व पत्नी की जिम्मेदारियां उठानी पड़ती हैं, जिसके लिए वे शारीरिक और मानसिक रूप से विकसित नहीं होते। खेलने और पढऩे-लिखने की उम्र में ही उनसे उम्मीद की जाती है कि वे बड़ों की तरह व्यवहार करें। उसके लिए पति, पिता और दामाद के रूप में जिम्मेदारी को निभाना कठिन होता है। शादी बहुत बड़ी जिम्मेदारी है, जिसके लिए लड़के और लड़की का मानसिक व शारीरिक रूप से तैयार होना बहुत जरूरी है।

उदास पक्ष यह है कि आज के दौर में भी कई लोग बाल विवाह की कुरीति में जकड़े हुए हैं। प्रदेश के कई जिलों चंबा, मंडी, सिरमौर व बिलासपुर में बाल विवाह के प्रयास के कई मामले सामने आए हैं। सुखद है कि महिला एवं बाल विकास विभाग व चाइल्ड लाइन के प्रयास से कई बच्चों को शादी के बंधन में बंधने से पहले बचा लिया गया। बुधवार व वीरवार को चंबा जिले में दो बच्चियों की कच्ची उम्र में शादी रोक दी गई। यह बात तय है कि जब तक समाज इसके प्रति जागरूक नहीं होगा, तब तक यह बुराई नहीं रुकेगी। इससे यह भी साबित होता है कि कहीं न कहीं कमी है, जिसे जल्द दूर करने के लिए ठोस कदम न उठाए गए तो स्थिति चिंताजनक हो सकती है। बच्चों से उनका बचपन छीनना सही नहीं है। उन्हें पढ़ाई लिखाई व खेलकूद के उचित अवसर दिए जाएं, ताकि वे समय से पहले मुरझाएं नहीं। सरकारी स्तर पर व गैर सरकारी संगठनों को पहल करनी होगी, ताकि बाल विवाह की बुराइयों से लोगों को जागरूक किया जा सके। जब हर पक्ष जागरूक होगा तभी बाल विवाह जैसी कुरीति खत्म हो सकेगी।

[ स्थानीय संपादकीय: हिमाचल प्रदेश ]