आंतरिक लोकतंत्र का अभाव कैसी परिस्थितियां पैदा करता है, इसका ताजा उदाहरण है इस अनुत्तरित प्रश्न को लेकर अनिश्चितता जारी रहना कि राजस्थान का मुख्यमंत्री कौन बनेगा? आज इस बारे में कुछ कहना कठिन है कि अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने रहेंगे या जाएंगे और यदि जाएंगे तो उनकी जगह कौन लेगा? बीते दिनों राजस्थान में जो कुछ हुआ और जिससे कांग्रेस नेतृत्व और वह भी सीधे गांधी परिवार की सत्ता को एक तरह से सीधी चुनौती दी गई, उसे लेकर अशोक गहलोत ने भले ही खेद जता दिया हो, लेकिन यह नहीं लगता कि वह आसानी से हथियार डालने वाले हैं और सब कुछ नेतृत्व यानी आलाकमान पर छोड़ने को तैयार हैं।

इसका प्रमाण है, उनका यह कथन कि सर्वेक्षण से नए मुख्यमंत्री का फैसला हो। इसी के साथ उन्होंने जिस तरह यह कहा कि वह कुर्सी पर रहें या नहीं, लेकिन अपने समर्थक विधायकों को नहीं भूल सकते, उससे यदि कुछ रेखांकित हो रहा है तो यही कि अधिसंख्य विधायक अब भी उनके साथ हैं। इसकी पुष्टि तब भी हुई थी, जब 90 से अधिक विधायकों ने दिल्ली से गए कांग्रेस पर्यवेक्षकों के मन मुताबिक प्रस्ताव पारित करने के स्थान पर त्यागपत्र देने की पहल की थी।

इस प्रस्ताव के तहत अगले मुख्यमंत्री के बारे में निर्णय सोनिया गांधी को करने की सहमति देनी थी। उन्होंने ऐसा करने से इन्कार किया। चूंकि इससे कांग्रेस आलाकमान की किरकिरी हुई, इसलिए अशोक गहलोत की गांधी परिवार के प्रति निष्ठा को लेकर प्रश्न उठे और उसके परिणामस्वरूप वह कांग्रेस अध्यक्ष पद की दौड़ से बाहर हो गए और उनकी जगह मल्लिकार्जुन खड़गे ने ली।

यह लगभग तय है कि मल्लिकार्जुन खड़गे ही कांग्रेस के अध्यक्ष बनेंगे, लेकिन यह यक्ष प्रश्न यथावत है कि राजस्थान में क्या होगा? पता नहीं, इस प्रश्न का उत्तर किस रूप में सामने आएगा, लेकिन क्या अशोक गहलोत यह बताएंगे कि 2018 में जब वह मुख्यमंत्री बने थे तो कोई सर्वेक्षण हुआ था? वास्तव में इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं, क्योंकि अपने देश में राजनीतिक दल आंतरिक लोकतंत्र का दिखावा ही करते हैं।

जब भी कोई दल मुख्यमंत्री के चेहरे के बिना चुनाव लड़ता है तो फिर जीत के बाद उसके चयन में आम जनता की कोई भूमिका नहीं रह जाती। उसका चयन होता है आलाकमान की इच्छा पर और इस बारे में जनता को कुछ भी पता नहीं चलता कि जिसके पक्ष में फैसला होता है, वह किस आधार पर होता है? यह लोकतांत्रिक मूल्यों का निरादर है। आखिर अपने देश में मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री का चयन उस तरह क्यों नहीं हो सकता, जैसे अभी ब्रिटेन में प्रधानमंत्री के संदर्भ में हुआ? यह वह प्रश्न है जिसका उत्तर इसलिए खोजा जाना चाहिए, ताकि भारतीय लोकतंत्र और सुदृढ़ हो सके और आलाकमान संस्कृति खत्म हो सके। यह संस्कृति लोकतांत्रिक मूल्यों के सर्वथा विरुद्ध है।