फिलहाल यह नहीं जाना जा सकता कि इधर कुछ राजनीतिक दल खुद को हिंदूवादी दिखाने-बताने की जो कोशिश कर रहे हैैं वह महज दिखावे के लिए है या फिर उनके मूल चिंतन में बदलाव की प्रक्रिया का हिस्सा, लेकिन इसके संकेत अवश्य मिल रहे हैैं कि शायद वे यह समझने लगे हैैं कि इस देश में सेक्युलरिज्म के नाम पर भारतीय परंपराओं और मूल्यों की अनदेखी लंबे समय तक नहीं चलने वाली। संभवत: यही कारण है कि जो राजनीतिक दल कल तक भाजपा को हिंदूवादी करार देकर उसे सांप्रदायिक ठहराते थे वे अब उसी के रास्ते पर चलते दिख रहे हैैं। यह स्पष्ट ही है कि आज ऐसे राजनीतिक दलों में कांग्रेस सबसे आगे नजर आ रही है।

केवल यही उल्लेखनीय नहीं है कि मध्य प्रदेश के बाद राजस्थान के लिए जारी कांग्रेस के घोषणा पत्र में गाय और गौशाला के साथ संस्कृत एवं वैदिक शिक्षा पर जोर दिया गया है, बल्कि यह भी है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी खुद को शिवभक्त साबित करने में लगे हुए हैैं। कायदे से इसकी जरूरत नहीं थी और कम से कम इस बात की तो कतई नहीं थी कि वह प्रधानमंंत्री नरेंद्र मोदी पर यह कहते हुए निशाना साधें कि वह अपने को हिंदू कहते हैैं, लेकिन उन्हें हिंदुत्व के मर्म का ज्ञान ही नहीं। क्या इससे हास्यास्पद और कुछ हो सकता है कि अपनी जाति और गोत्र का उल्लेख कर रहे राहुल गांधी हिंदुत्व का मर्म समझाने की कोशिश कर रहे हैैं और वह भी उन नरेंद्र मोदी को जिन्होंने राजनीति में सक्रिय होने के पहले एक संन्यासी जैसा जीवन बिताया? राहुल गांधी के बयान पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के इस सवाल पर हैरानी नहीं कि क्या अब वह उन्हें हिंदुत्व की सीख देंगे?

पता नहीं कांग्रेस या अन्य राजनीतिक दल खुद को हिंदूवादी दिखाने को लेकर कितने गंभीर हैैं, लेकिन सभी दल यह समझें तो श्रेयष्कर कि हिंदुत्व का मतलब केवल मंदिर जाना या फिर पूजा-पाठ करना नहीं है।हिंदुत्व तो उस भारतीयता का पर्याय है जो समस्त वसुधा को अपना कुटुंब मानता है और जो सबके कल्याण की कामना करता है। हिंदुत्व के नाम पर की जाने वाली राजनीति में किसी तरह के भेद के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता।

एक समय और विशेष रूप से आजादी के पहले कांग्रेस में भारतीय मूल्यों और परंपराओं के प्रति आदर भाव था, लेकिन कालांतर में सेक्युलरिज्म के फेर में इन मूल्यों और परंपराओं की अनदेखी की जाने लगी और फिर उनका उपहास भी उड़ाया जाने लगा। एक समय तो ऐसा भी आया कि हिंदुत्व को हेय दृष्टि से देखने का चलन शुरू हो गया। यह चाहे वाम दलों के प्रभाव में हुआ हो या फिर सेक्युलर दिखने की होड़ में, लेकिन सच्चाई यही है कि सर्वधर्म समभाव भारत का मूल स्वभाव है। भारत इसलिए पंथनिरपेक्ष नहीं है कि आपातकाल के दौरान संविधान में सेक्युलर शब्द जोड़ दिया गया। इस शब्द की उत्पत्ति और उससे परिचित होने के पहले से भारत सह अस्तित्व के प्रति अपनी आस्था का प्रदर्शन करता चला आ रहा है। बेहतर होगा कि नेतागण पहले हिंदुत्व का सार समझें और फिर उस पर कुछ बोलें।