अयोध्या मामले की सुनवाई तय समय में पूरी होने के साथ ही सदियों पुराने इस विवाद के समाधान की उम्मीद बढ़ गई है। चूंकि इस मामले की सुनवाई कर रही संविधान पीठ में शामिल प्रधान न्यायाधीश 17 नवंबर को सेवानिवृत हो रहे हैं इसलिए इसके पहले फैसला आना है। इस मामले में फैसला कुछ भी हो, इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि एक समय यह धारणा बन रही थी कि सुप्रीम कोर्ट राजनीतिक एवं सामाजिक रूप से संवेदनशील इस प्रकरण की सुनवाई करने से बचना चाह रहा है। लंबे इंतजार के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस धारणा को दूर करते हुए इस मामले की सुनवाई करने का फैसला किया और उसने दिन-प्रतिदिन सुनवाई की। राष्ट्रीय महत्व के मामलों की सुनवाई में ऐसी ही तत्परता का परिचय दिया जाना चाहिए, क्योंकि एक बड़ी संख्या में लोग फैसले की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं। इस मामले में तो फैसले का इंतजार पूरा देश ही कर रहा है।

बेहतर तो यह होता कि अयोध्या मामला अदालत की चौखट तक आता ही नहीं, लेकिन जब आपसी बातचीत से मामले को सुलझाने की कोशिश नाकाम रही तब फिर इसके अलावा और कोई उपाय नहीं रह गया था कि अदालत अपना फैसला सुनाए। भले ही दुनिया की नजर में यह मामला जमीन के एक टुकड़े के मालिकाना हक की लड़ाई हो, लेकिन सच्चाई यह है कि यह आस्था से जुड़ा सवाल भी है। वैसे तो अदालतें आस्था से जुड़े मामलों का फैसला आसानी से नहीं कर सकतीं, लेकिन सौभाग्य से इस मामले में ऐसे साक्ष्य उपलब्ध हैं जो फैसले को दिशा देने का काम करेंगे। इनमें सबसे उल्लेखनीय हैं पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की वह रिपोर्ट जो अयोध्या में विवादित स्थल पर किए गए उत्खनन पर आधारित है। इसके अलावा अन्य अनेक महत्वपूर्ण साक्ष्य भी हैं। अब जब यह स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला इन्हीं साक्ष्यों पर आधारित होगा तब फिर सभी पक्षों को उसका सम्मान करने के लिए तैयार रहना चाहिए।

उचित यह होगा कि दोनों पक्ष इसके लिए माहौल बनाएं कि जो भी फैसला आए उसे सभी स्वीकार करें। पूरे देश का ध्यान खींचने वाले अयोध्या मामले की सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों की ओर जो तमाम दलीलें दी गईं उनसे यह तो संकेत मिला कि कौन कितने मजबूत धरातल पर है, लेकिन उनके आधार पर निष्कर्ष निकालकर अपने-अपने पक्ष में दावे करने का कोई मतलब नहीं। यह समय किसी भी तरह की दावेदारी जताने का नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करने का है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान हो। नि:संदेह यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी उनकी अधिक है जो अयोध्या मामले की सुनवाई से जुड़े रहे हैं।