एक अर्से से अपना असंतोष प्रकट कर रहे हार्दिक पटेल ने अंतत: गुजरात कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष पद और साथ ही पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें मनाने की कोई कोशिश नहीं की। क्यों नहीं की, यह कांग्रेस नेतृत्व ही बेहतर बता सकता है, लेकिन यह वही हार्दिक पटेल हैं, जिन्हें बड़े गाजे-बाजे के साथ पार्टी में शामिल किया गया था। उस समय उन्हें राहुल गांधी की टीम का एक मुख्य स्तंभ बताया गया था।

हार्दिक पटेल राहुल की टीम के पहले ऐसे सदस्य नहीं, जिन्होंने पार्टी छोड़ी हो। ऐसे नेताओं की एक लंबी सूची है। इनमें ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, सुष्मिता देव, आरपीएन सिंह आदि प्रमुख हैं। युवा नेताओं के अलावा अन्य वरिष्ठ नेताओं के भी कांग्रेस छोड़ने का सिलसिला थम नहीं रहा है। हाल में पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने पार्टी छोड़ी, क्योंकि उन्हें अपमानित किया जा रहा था। आम तौर पर इन सब नेताओं की शिकायत यही रही कि कांग्रेस नेतृत्व यानी गांधी परिवार के यहां उनकी कोई सुनवाई नहीं होती।

लगता है गांधी परिवार को इसकी कोई परवाह नहीं कि उसके नेता पार्टी क्यों छोड़ रहे हैं, क्योंकि जब भी कोई नेता पार्टी छोड़ता है तो सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी के समर्थक खुशी ही जताते हैं। हार्दिक पटेल के इस्तीफे के बाद भी कई कांग्रेस नेता यह कहते मिले कि अच्छा हुआ कि उन्होंने पार्टी छोड़ दी। कांग्रेस नेतृत्व को यह आभास हो जाए तो बेहतर कि ऐसे चाटुकार नेता पार्टी की लुटिया डुबोने का ही काम कर रहे हैं। उसे यह भी समझ आना चाहिए कि बदलाव की बातें करने से कुछ नहीं होता।

कांग्रेस अपने तौर-तरीकों और खासकर अपनी रीति-नीति में सुधार करने की बातें तो बहुत करती है, लेकिन होता कुछ नहीं है। इसका प्रमाण है उदयपुर में आयोजित चिंतन शिविर। चूंकि इस चिंतन शिविर में वही घिसी-पिटी बातें की गईं, इसलिए पार्टी में सुधार की कोई संभावना नहीं दिखती। शायद इसीलिए शशि थरूर को यह कहना पड़ा कि सुधार केवल कहने से नहीं होगा, बल्कि इसके लिए सही प्रयास करने की जरूरत है। इस जरूरत की पूर्ति होने के कोई आसार नहीं।

हालांकि गांधी परिवार अपने मन की ही करता है और अपने अलावा अन्य सभी में दोष देखता है, लेकिन अच्छा होगा कि वह हार्दिक पटेल के त्यागपत्र में दर्ज इस बात पर ध्यान दे कि कांग्रेस केवल विरोध की राजनीति तक सिमट कर रह गई है, जबकि देश की जनता को विरोध नहीं, एक ऐसा विकल्प चाहिए, जो उसके भविष्य के बारे में सोचता हो।