अंतरराज्यीय वीडियो कोच बसों में ट्रांसपोर्ट विभाग के निर्देश का उल्लंघन किस तरह हो रहा है, इसका अंदाजा विगत दिवस ट्रैफिक पुलिस द्वारा कुछ बसों को जब्त किए जाने से लगाया जा सकता है। कुछ ट्रांसपोर्टर्स चंद रुपये के लालच में वीडियो बसों की निर्धारित सीटों को स्लीपर में बदलने के लिए किस तरह रजिस्ट्रेशन सर्टीफिकेट्स से छेड़छाड़ को अंजाम देते आ रहे हैं, उनके खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज करने की जरूरत है। ट्रांसपोर्ट विभाग द्वारा जारी रूट परमिट और आरसी में यात्रियों की सीटिंग कैपेस्टी को बदलना अपराध की क्षेणी में ही नही आता बल्कि यह उन यात्रियों की जान से भी खिलवाड़ हो, जो इन बसों में यात्र करते हैं। खुदा ना खास्ता रास्ते में कुछ अनहोनी हो जाए तो यात्रियों को इंश्योरेंस से कुछ भी नहीं मिलेगा। यह मामला तब सामने आया जब ट्रैफिक पुलिस ने पहली बार कुछ वीडियो कोच बसों के दस्तावेजों की जांच की। ट्रैफिक पुलिस अगर इन बसों को नहीं पकड़ती तो यह गोरखधंधा चलता रहता।

एक बात यह भी है कि ट्रैफिक पुलिस रात के समय बसों की चेकिंग नहीं करती, क्योंकि उनकी ड्यूटी शाम के बाद खत्म हो जाती है। लेकिन यह सही नहीं है, इससे तो लगता है कि ट्रांसपोर्टरों को कानून अपने हाथ में लेने की आदत सी पड़ गई है। इस कानून का उल्लंघन यात्रियों की जान को दांव पर लगा कर किया जा रहा है। नियमों के मुताबिक स्लीपर कोच की लंबाई छह फुट होनी चाहिए, लेकिन इन्हें साढ़े पांच फुट कर कुछ स्लीपर कोच को बढ़ाया गया है। सरकार को चाहिए कि वह ऐसी सभी बसों के दस्तावेजों की जांच करें। जिससे यह पता चल सके कि क्या यह कोताही केवल कुछ ट्रांसपोर्टर ही कर रहे हैं या फिर सभी। ट्रैफिक पुलिस के साथ ट्रांसपोर्ट विभाग को भी चाहिए कि परमिट और आरसी रिन्यु करते समय इस बात का ध्यान रखे कि जो दस्तावेज ट्रांसपोर्टरों को गए हैं उनसे कोई छेड़छाड़ तो नहीं हुई है। ऐसा संभव नहीं हो सकता कि ट्रांसपोर्ट विभाग को इस गोरखधंधे का पता ही न हो। यह एक आपराधिक मामला है, इसकी बाकायदा पुलिस द्वारा जांच होनी चाहिए और जो भी दोषी है, उन ट्रांसपोर्टरों के परमिट रद होने चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय: जम्मू-कश्मीर ]