बजट की आधी राशि भी झारखंड में खर्च नहीं हो सकी
कृषि जैसे बड़े सेक्टर में सुधार की अपेक्षित कवायद निर्मूल साबित हुई। कृषि बजट की महज 22.43 फीसद राशि खर्च।
कृषि जैसे बड़े सेक्टर में सुधार की अपेक्षित कवायद निर्मूल साबित हुई। पिछले नौ महीने में कृषि बजट की महज 22.43 फीसद राशि खर्च होना इसकी बानगी भर है।
--------
चालू वित्तीय वर्ष की पिछली तीन तिमाही में बजट की आधी राशि भी झारखंड में खर्च नहीं हो सकी है। कृषि विभाग की स्थिति इस मामले में सबसे फिसड्डी है। यह स्थिति तब है, जबकि मुख्यमंत्री स्वयं विभिन्न मौकों पर किसानों की आय दोगुनी करने का संकल्प दोहरा चुके हैं। इतना ही नहीं, सरकार की इस सोच को अमलीजामा पहनाने के लिए अलग से कृषि बजट तक का प्रावधान किया गया। परंतु कृषि जैसे बड़े सेक्टर में सुधार की अपेक्षित कवायद निर्मूल साबित हुई। पिछले नौ महीने में कृषि बजट की महज 22.43 फीसद राशि खर्च होना इसकी बानगी भर है। सवाल यह कि जहां की लगभग 80 फीसद आबादी कृषि पर आश्रित हो, इस मद में उपलब्ध राशि खर्च करने में सरकारी मशीनरियां उदासीन क्यों रहीं? सवाल सरकार की डिलीवरी मैकेनिज्म पर भी उठता है।
आखिर कच्छप गति से खर्च हो रही राशि की सुध शीर्षस्थ पदाधिकारियों ने क्यों नहीं ली? इस दिशा में सुधारात्मक उपाय क्यों नहीं किए गए। समाज के अंतिम व्यक्ति तक को लाभ पहुंचाने वाले एक अन्य विभाग खाद्य, सार्वजनिक वितरण एवं उपभोक्ता मामले का भी प्रदर्शन इस मामले में अच्छा नहीं कहा जा सकता। इस विभाग की झोली में भी लगभग 60 फीसद राशि डंप है। एक ओर राज्य जहां इज ऑफ डूइंग बिजनेस, मनरेगा के तहत मानव दिवस के सृजन और स्वच्छता अभियान के मामले में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए देश में सुर्खियां बटोर रहा है, वहीं विभिन्न विभागों के लिए किए गए बजटीय प्रावधान की आधी राशि ही खर्च होना उसके नकारात्मक रुख का उजागर करता है। अब जबकि वित्तीय वर्ष की समाप्ति में महज तीन महीने शेष हैं, बची हुई 50 फीसद राशि खर्च करना सरकार के लिए चुनौती है। ऐसे में यह आवश्यक है कि सरकार विभागवार योजनाओं की प्राथमिकताओं को नए सिरे से सूचीबद्ध करे, योजनाओं को मूर्त रूप देने का टाइम बांड टास्क अफसरों को सौंपे और उसका फालोअप भी करे। अग्र्रिम योजनाओं पर भी बेहतर काम अपेक्षित है। अगर अधिकारी समय रहते तमाम जटिलताओं को नहीं सुलझाएंगे तो ज्यादा खामियां पैदा होंगी। मार्च से पूर्व बजट खर्च को तेजी से निपटाने की आपाधापी में लूट की गुंजाइश होती है। ऐसी परिस्थिति में वित्तीय अनुशासन को ध्यान में रखते हुए बजट राशि का बेहतर उपयोग अपेक्षित है।
[ स्थानीय संपादकीय: झारखंड ]