सभी गांवों में बिजली पहुंचने को लेकर किए जा रहे दावे और बढ़ी हुई बिजली दरों को लेकर प्रदेश भर में एक नई बहस शुरू हो गई है। केंद्रीय बिजली मंत्रलय ने भले ही आंकड़ों के हवाले से दावा कर दिया हो कि देशभर के गांवों में बिजली पहुंचा दी गई है, लेकिन झारखंड के कई गांवों में लोग अब भी अंधेरे में या ढिबरी की रोशनी में जीवन जीने को मजबूर हैं। अभी भी प्रदेश के सैकड़ों गांव और हजारों टोलों में बिजली नहीं पहुंची है, नक्सल प्रभावित लातेहार में 2570 टोले अंधेरे में हैं, वहीं पूर्वी सिंहभूम के 1250 गांवों के लोगों ने बिजली के खंभे पर बल्ब नहीं देखा है। देवघर के 1037 गांवों में अंधेरा है, खूंटी के 300 गांव ढिबरी की रोशनी में जीवन जीने को मजबूर हैं। राज्य सरकार के ये आंकड़े केंद्र के दावों को आईना दिखा रहे हैं, खुद मुख्यमंत्री रघुवर दास इस सच्चाई को जानते हैं और उन्होंने घोषणा की है कि दीपावली तक झारखंड के सभी गांवों में बिजली पहुंचा दी जाएगी, इसके लिए मिशन मोड में काम चल रहा है। वहीं झारखंड के शहरी क्षेत्रों की बात करें तो अब भी 1.99 लाख शहरी घरों में बिजली नहीं पहुंची है। प्रदेश में स्मार्ट मीटरिंग भी कागज पर ही है। यानी जमीनी स्तर पर सुविधाएं नदारद हैं लेकिन बिजली की दरों में बेतहाशा वृद्धि कर दी गई है।

जबकि बिजली की बढ़ी हुई दर को मंजूरी देने वाले राज्य विद्युत नियामक आयोग ने साफ कहा है कि सुविधाएं देने के बाद ही उपभोक्ताओं से बढ़ी हुई दर वसूली जा सकती है। मौजूदा वक्त में प्रदेश में बिजली की जमीनी हकीकत कुछ और है। न पूरी तरह बिजली की संचरण व्यवस्था दुरुस्त है और न ही डिमांड के अनुरूप लोगों को बिजली मिल रही है। लंबे-लंबे अघोषित कट ङोलने को लोग मजबूर हैं। सरकार इस पर राहत देते हुए सब्सिडी देने की बात कह रही है। लेकिन सब्सिडी कैसे दी जाए यह भी स्पष्ट नहीं है, क्योंकि सरकार के पास उपभोक्ताओं का पूरा आंकड़ा नहीं है, ऐसे में गैस सब्सिडी की तरह बैंक अकाउंट में सब्सिडी देने में परेशानी होगी। जरूरी है कि इस पूरी प्रक्रिया का फिर से अवलोकन हो, उपभोक्ताओं पर कम से कम बोझ पड़े यह ध्यान रखा जाए। अगर बिजली की दर में बढ़ोतरी जरूरी ही हो तो उसके अनुरूप सुविधाएं दी जाएं।

[ स्थानीय संपादकीय: झारखंड ]