सरकार झारखंड में पुलिस तंत्र को मजबूत करने के लिए आर्थिक अपराध इकाई का गठन कर रही है। यह कदम स्वागतयोग्य है। रांची में मुख्यालय गठित कर हजारीबाग, धनबाद, दुमका, पलामू और चाईबासा में क्षेत्रीय कार्यालय खोलने की तैयारी है। चाहे कोयला हो, लौह अयस्क हो या किसी अन्य प्रकार का खनिज। आर्थिक अपराध का भी जन्म इन खदानों से होता है। इतिहास साक्षी है कि धनबाद में पैदा हुए माफिया तंत्र के पल्लवित-पुष्पित होने में आर्थिक अपराध की बड़ी भूमिका रही है। जो रूपरेखा पुलिस महकमा ने तैयार की है, वह आरंभिक तौर पर पूरे राज्य को अपने नेटवर्क में कवर कर रही है। यदि विशेषज्ञता के साथ पुलिस काम करेगी तो आर्थिक अपराध की जड़ पर हमला हो सकेगा। दरअसल, झारखंड में राजनेता से लेकर अफसरों की लंबी सूची है, जिनका साथ आर्थिक अपराध में रहा है। अभी हाल में ही धनबाद में आर्थिक अपराध का एक बड़ा मामला सामने आया है। बिहार के लखीसराय जिले की पुलिस भी इस मामले का अनुसंधान कर रही है। इसका सरगना पप्पू साव धनबाद का ही रहने वाला है। वह अभी तक फरार है। अगस्त माह में ही इस पर पुलिस की दबिश पड़ी। पुलिस ने प्रथमदृष्टया यह पाया कि पप्पू साव के नेटवर्क में आतंकी फंडिंग भी हुई। ऐसे मामले में धीरे-धीरे अनुसंधान ढीला पड़ जाता है। लोग रोज ही बैंक फ्रॉड के शिकार हो रहे हैं। जामताड़ा और धनबाद के टुंडी के एक दर्जन गांव में ऐसा गिरोह सक्रिय है जो लगातार साइबर क्राइम कर रहा है। धनबाद में इसकी इकाई के होने से ऐसे अपराध के अनुसंधान का दायरा और रफ्तार बढ़ेगा। दरअसल, इसे बहुत पहले बन जाना चाहिए। धनबाद की कोयला खदानों में रोज ही आउटसोर्सिंग में वर्चस्व को लेकर झंझट होता रहता है। हर माह किसी न किसी की हत्या हो जाती है। लगातार विधि व्यवस्था का संकट भी बना रहता है। बढ़ती जनसंख्या के बीच सामान्य अपराध पर रोक और अनुसंधान में ही पुलिस हांफती रहती है। अलग से इकाई का गठन कर एक नया तंत्र विकसित किया जाना बेहद जरूरी है। लेकिन, यह सब निर्भर करेगा कि इस इकाई में शामिल किये जाने वाले पुलिस अफसर कितने योग्य हैं? उनका प्रशिक्षण कितना कौशलपूर्ण है। यह काम सामान्य पुलिस के कामकाज से बहुत भिन्न होगा। अपराधियों को उसकी ही चाल से मात देने वाला अफसर ही बाजीगर होगा। तभी इसके गठन का उद्देश्य भी पूरा हो सकेगा। सरकार को चाहिए कि वह जिन अफसरों का इस इकाई के लिए चयन करे उनको गुणवत्तायुक्त प्रशिक्षण जरूर दिलाए।
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हाइलाइटर
आर्थिक अपराध इकाई का काम सामान्य पुलिस के कामकाज से बहुत भिन्न होगा। अपराधियों को उसकी ही चाल से मात देने वाला अफसर ही बाजीगर होगा।

[ स्थानीय संपादकीय: झारखंड ]