उच्च शिक्षा में सुधार और विश्वविद्यालयों में शोध कार्यों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार को दीर्घकालिक नीति के साथ आगे कदम बढ़ाने चाहिए।

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राज्य में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए राजभवन की ओर से निरंतर कोशिशें की जा रही हैं। इस कड़ी में एक बार फिर राजभवन में आयोजित राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की बैठक में राज्यपाल डॉ कृष्णकांत पाल ने विश्वविद्यालयों में शोध कार्यों को गुणवत्तायुक्त बनाने पर जोर तो दिया ही, साथ में क्वालिटी सेंटर बनाने के निर्देश भी दिए। विश्वविद्यालयों के बीच गुणवत्ता को प्रोत्साहित करने के लिए राजभवन की ओर से गवर्नर्स बेस्ट यूनिवर्सिटी अवार्ड भी शुरू किए गए हैं। इन प्रयासों के अच्छे परिणाम जल्द दिखाई दें, इसके लिए सरकार के स्तर पर भी ठोस फैसले लेने की दरकार है।

राज्य में जितनी तेजी से डिग्री कॉलेज व विश्वविद्यालय खोले गए हैं, उतनी तत्परता से शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया गया। ऐसा होता तो पहले से बड़ी संख्या में स्थापित सरकारी डिग्री कॉलेजों को संसाधनयुक्त बनाने पर जोर दिया जाता, लेकिन ऐसा न करते हुए बीते वर्षों में बड़ी संख्या में नए कॉलेज खोले गए। वर्तमान में हालत यह है कि 40 फीसद से ज्यादा सरकारी डिग्री कॉलेजों के पास अपने भवन तक नहीं हैं। ऐसे कॉलेज भी काफी हैं, जिनके पास भूमि उपलब्ध नहीं है। कमोबेश यही स्थिति सरकारी विश्वविद्यालयों की भी है। कई विश्वविद्यालय भवन को तरस रहे हैं। विश्वविद्यालयों में अच्छी लैबोरेट्री और लाइब्रेरी को लेकर सरकारी तंत्र पर इच्छाशक्ति की कमी बनी हुई है।

विश्वविद्यालयों और सरकारी डिग्री कॉलेजों में शैक्षिक माहौल न बन पाने के पीछे भी ऐसी ही रवैया जिम्मेदार है। फैकल्टी की कमी को कामचलाऊ व्यवस्था के सहारे दूर करने की कोशिश की जा रही है। इन परिस्थितियों में राज्य में उच्च शिक्षा के उत्कृष्टता केंद्र तैयार होने की उम्मीद ही बेमायने है। बेहतर यही है कि शिक्षा को लेकर फैसले तात्कालिक और सियासी लाभ व हानि देखकर नहीं किए जाएं। तब ही विश्वविद्यालयों में मौलिक व गुणवत्तायुक्त शोध के लिए वातावरण बनाया जा सकता है। राज्य और बाजार की जरूरतों को ध्यान में रखकर भी शोध कार्यों को प्रोत्साहित करने की पैरवी की जाती रही है। इसके लिए शोधार्थियों की समस्याओं के निराकरण को विश्वविद्यालयों को सजग होने की आवश्यकता है। राजभवन ने शोधार्थियों को प्रोत्साहन देने और उनके लिए उपयुक्त वातावरण तैयार करने पर खासा जोर दिया है। राज्य सरकार को भी इस मामले में गंभीर होना पड़ेगा। इसमें कामचलाऊ नजरिया अपनाया जाता रहा तो खामियाजा प्रदेश और उसके कर्णधारों को ही उठाना पड़ेगा।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तराखंड ]