चीन की सीमा से लगते इलाकों में सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण 44 सड़कों के निर्माण का फैसला एक जरूरी कदम है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि यह वह कदम है जो अब तक उठा लिया जाना चाहिए था। आजादी के 70 साल बाद सीमांत इलाकों में सुरक्षा के आवश्यक उपाय न किया जाना यही बताता है कि सुरक्षा संबंधी प्राथमिकताओं पर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया। कम से कम अब तो यह सुनिश्चित किया ही जाना चाहिए कि सीमांत इलाकों का विकास सही तरीके से हो। यह विकास केवल रणनीतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के उद्देश्य से ही नहीं, बल्कि ऐसे इलाकों में रह रहे लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए भी किया जाना चाहिए।

यह ठीक है कि चीन की सीमा से लगते अधिकांश इलाके हिमालय क्षेत्र में हैं और इस क्षेत्र में सड़कों, पुलों एवं अन्य बुनियादी ढांचे के निर्माण में अनेक समस्याएं आती हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि कहीं न कहीं राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी भी आड़े आई। ऐसा नहीं है कि केवल सीमांत क्षेत्र के पर्वतीय अंचलों के विकास की ओर ही पर्याप्त ध्यान देने से बचा गया, क्योंकि यह भी सामने आ रहा है कि अभी पाकिस्तान से लगती सीमा और विशेष रूप से राजस्थान एवं पंजाब में भी सुरक्षा के उपयुक्त उपाय किए जाने शेष हैं। समझना कठिन है कि मैदानी इलाकों में भी सुरक्षा के समुचित कदम समय रहते क्यों नहीं उठाए गए? बेहतर हो कि सीमांत इलाकों की समग्र सुरक्षा की गहन समीक्षा की जाए।

सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़कों और अन्य बुनियादी ढांचे का निर्माण केवल इस मकसद से ही नहीं किया जाना चाहिए कि किसी आपात स्थिति में सेना तत्काल वहां पहुंच सके, बल्कि यह ध्यान रखकर भी किया जाना चाहिए कि ऐसे इलाकों में रहने वाले खुद को उपेक्षित न महसूस करें। इस मामले में चीन से सबक लिया जाना चाहिए। माना कि चीन सरीखी विकास की तीव्र गति की बराबरी कर पाना कठिन है, लेकिन इसका कोई औचित्य नहीं कि हम सुरक्षा के मामले में आवश्यक कदम उठाने में भी उससे पीछे दिखें। हिमालयी क्षेत्र के पर्वतीय एवं सीमांत इलाकों में सुरक्षा और विकास संबंधी जरूरतों को पूरा करने के साथ ही इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है कि इन इलाकों का पारिस्थितिकी तंत्र कैसे सुरक्षित रहे। यह इसलिए अनिवार्य है, क्योंकि यह पारिस्थितिकी तंत्र प्राकृतिक संपदा का एक बड़ा स्नोत है।

इस तंत्र की देखभाल एक विरासत की तरह की जानी चाहिए। इसलिए और भी, क्योंकि यह तमाम नदियों का उद्गम होने के साथ ही देश के जलवायु चक्र को संतुलन भी प्रदान करता है। स्पष्ट है कि सुरक्षा तंत्र को मजबूत बनाने और विकास की चिंता करते हुए हिमालयी क्षेत्र का संरक्षण भी हमारी प्राथमिकता में होना चाहिए। यह दूरदर्शिता में कमी का ही एक प्रमाण है कि सीमांत क्षेत्र के कई पर्वतीय इलाकों में ग्रामीण आबादी घटती जा रही है। कुछ इलाकों में तो गांव के गांव खाली होते जा रहे हैं। ऐसी स्थिति क्यों बन रही, इसकी तह तक जाना ही होगा, क्योंकि सीमांत इलाकों की आबादी एक तरह का सुरक्षा चक्र होती है।