एक ऐसे समय जब असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी पर काम हो रहा है तब राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर अर्थात एनपीआर की तैयारी स्वागतयोग्य है। यह काम इसलिए होना चाहिए ताकि उन हालात से बचा जा सके जिनसे आज असम दो-चार हो रहा है। जहां एनआरसी यह बताएगा कि कौन देश का नागरिक है वहीं एनपीआर देश में रहने वालों की पहचान सुनिश्चित करेगा। बेहतर होता कि देश में रहने वालों की पहचान तय करने का काम पहले ही कर लिया जाता। चूंकि यह नहीं किया गया इसीलिए आज असम में यह बताना मुश्किल है कि कौन देश का नागरिक है और कौन बांग्लादेश से आकर वहां बस गया है?

चूंकि किसी भी देश के नागरिकों और निवासियों में भेद होता है और उनके अधिकार भी अलग-अलग होते हैैं इसलिए एनपीआर बनना ही चाहिए। पता नहीं भविष्य में असम की तरह शेष देश में नागरिक रजिस्टर तैयार करने की जरूरत पड़ेगी या नहीं, लेकिन अगर कभी पड़ी तो उसका आधार जनसंख्या रजिस्टर ही बनेगा।

आज जैसे असम में यह जानना कठिन है कि किसे नागरिक के तौर पर देखा जाए और किसे निवासी के रूप में वैसे ही स्थिति देश के कुछ अन्य हिस्सों में भी बन रही है। ऐसा इसीलिए है, क्योंकि दूसरे देशों से वैध-अवैध तरीके से भारत आकर बसने वालों की पहचान का कोई तंत्र नहीं बन सका। बांग्लादेश से लाखों लोगों की घुसपैठ ने असम समेत पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों और साथ ही पश्चिम बंगाल में जो गंभीर समस्याएं खड़ी कीं वे किसी से छिपी नहीं। ये लाखों लोग देश के संसाधनों का इस्तेमाल कर रहे हैैं और उसके चलते पूर्वोत्तर राज्यों के नागरिक अपने अधिकारों का हनन होते हुए देख रहे हैैं। वे अपनी सांस्कृतिक पहचान बचाए रखने के लिए भी चिंतित हैैं।

विडंबना यह है कि इस चिंता की अनदेखी कर कुछ लोग बाहर से आने वालों के प्रति नरमी बरतने का उपदेश देने में लगे हुए हैैं। वे र्रोंहग्या के प्रति भी उदारता बरतने की वकालत कर रहे हैैं। यह ठीक नहीं। भारत कोई धर्मशाला नहीं कि जो चाहे, यहां आकर बस जाए और संसाधनों की तंगी को बढ़ाने का काम करे। आखिर जब पश्चिम के धनी देश अवैध प्रवासियों के प्रति सख्त हैैं तो भारत क्यों उनके प्रति उदारता बरते और वह भी तब जब वे सुरक्षा के लिए खतरा बन सकते हों।

राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर की तैयारी अच्छी बात है, लेकिन इसी के साथ सीमाओं की सुरक्षा पर भी ध्यान देना जरूरी है। यह अच्छा नहीं हुआ कि हजारों रोहिंग्या पूर्वोत्तर के सीमावर्ती इलाकों से घुसपैठ कर जम्मू जाकर बस गए और किसी को कुछ पता नहीं चला।

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