पंजाब नेशनल बैैंक में बड़ा घोटाला सामने आने के बाद बड़े पैमाने पर बैैंक कर्मचारियों के तबादले के साथ वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैैंक की ओर से बैैंकिंग व्यवस्था की खामियां पता करने की कोशिश एक तरह से चिड़िया चुग गई खेत वाली कहावत को ही चरितार्थ कर रही है। बैैंकिंग व्यवस्था के साथ सरकार की साख को बट्टा लगाने वाले कारनामे के बाद दिखाई जा रही सक्रियता से तो यही लगता है कि सभी जिम्मेदार लोग घोटाला होने का इंतजार कर रहे थे। आखिर नीरव मोदी की कारगुजारी का पता लगने के पहले किसी ने इसकी चिंता क्यों नहीं की कि सरकारी बैैंक आवश्यक नियम-कानूनों और निगरानी तंत्र का पालन करते हुए पर्याप्त सतर्कता बरत रहे हैैं या नहीं? क्या वित्त मंत्रालय और साथ ही रिजर्व बैैंक को तभी नहीं चेत जाना चाहिए था जब नोटबंदी के बाद यह साफ हो गया था कि बैैंकों ने जमकर मनमानी की है?

रिजर्व बैैंक की यह जवाबदेही बनती है कि उसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचलित इलेक्ट्रॉनिक वित्तीय प्लेटफार्म स्विफ्ट को कोर बैैंकिंग सिस्टम के दायरे में लाना अनिवार्य क्यों नहीं बनाया? इस सवाल का जवाब इसलिए मिलना चाहिए, क्योंकि 2016 में बांग्लादेश में एक बैैंक से हुई 8.1 करोड़ डॉलर की धोखाधड़ी में स्विफ्ट संदेश प्रणाली की ही खामी सामने आई थी। समझना कठिन है कि इसके बाद रिजर्व बैैंक ने भारतीय बैैंकों से केवल सावधान रहने को कहकर कर्तव्य की इतिश्री क्यों कर ली? आखिर उसने यह सुनिश्चित क्यों नहीं किया कि बैैंक हर हाल में स्विफ्ट संदेश प्रणाली को कोर बैैंकिंग सिस्टम का हिस्सा बनाएं? अगर रिजर्व बैैंक ने बैैंकों को इसके लिए बाध्य किया होता तो शायद नीरव मोदी का गोरखधंधा पहले ही पकड़ में आ जाता।

पंजाब नेशनल बैैंक के घोटाले पर वित्त मंत्री की ओर से यह जो संकेत दिया गया कि बैंक प्रबंधन और ऑडिटर्स के खिलाफ भी कार्रवाई हो सकती है उसके संदर्भ में भी यह सवाल उठता है कि आखिर इसके पहले और खासकर तभी बैैंकिंग प्रबंधन और बैैंकों की अॉडिट व्यवस्था को दुरुस्त करने की कोई ठोस पहल क्यों नहीं हुई जब फंसे कर्ज की समस्या बेलगाम होती दिख रही थी? सरकारी बैैंकों की नियामक संस्था रिजर्व बैैंक के साथ यह नैतिक जिम्मेदारी तो वित्त मंत्रालय की भी बनती थी कि वह बैैंकों के कुप्रबंधन को ठीक करने के लिए अपने स्तर पर उचित कदम उठाता। यदि सरकारी बैैंकों के फंसे कर्ज एनपीए में तब्दील होते जा रहे हैैं और सक्षम लोग कर्ज लौटाने के बजाय बहाने बनाकर मौज कर रहे हैैं तो इसीलिए कि बैैंकों का प्रबंधन कुप्रबंधन का पर्याय बन गया है। इसी कुप्रबंधन के कारण सरकारी बैैंक आम आदमी के बजाय संदिग्ध किस्म के लोगों के हितों की पूर्ति अधिक कर रहे हैैं। उनके गोरखधंधे की वजह से ही उनकी साख रसातल में जा लगी है। रिजर्व बैैंक के साथ-साथ सरकार को यह समझ आ जाना चाहिए कि अगर बैैंकिंग व्यवस्था सुधरी नहीं तो उस पर से लोगों का भरोसा उठ सकता है और वे देश के साथ-साथ विदेश में भी बदनाम हो सकते हैैं। ऐसी कोई स्थिति भारतीय अर्थव्यवस्था को गंभीर संकट की ओर ही ले जाएगी।

[ मुख्य संपादकीय ]