कांग्रेस से निकलकर अपनी नई पार्टी बनाने जा रहे गुलाम नबी आजाद ने यह कहकर भले ही चौंकाया हो कि उनके राजनीतिक एजेंडे में यह वादा नहीं है कि वह अनुच्छेद-370 की बहाली करा देंगे, लेकिन उन्होंने जो कुछ कहा वह एक वास्तविकता है। अपने इस कथन के माध्यम से उन्होंने जम्मू-कश्मीर और विशेष रूप से घाटी की जनता का एक तरह से सच से सामना कराने का काम किया है। उनका यह कहना भी महत्वपूर्ण है कि अनुच्छेद-370 की बहाली का वादा एक झूठा वादा होगा।

बारामुला की एक जनसभा में दिया गया उनका यह बयान इस दृष्टि से भी उल्लेखनीय हो जाता है, क्योंकि इन दिनों राजनीतिक दल लोगों को लुभाने और उनका वोट प्राप्त करने के लिए हवा-हवाई वादे करने में जुटे हुए हैं। गुलाम नबी आजाद के बयान के बाद कश्मीर के अन्य राजनीतिक दलों और विशेष रूप से नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के नेता यह समझें तो बेहतर कि अब अनुच्छेद-370 की वापसी असंभव है।

इस अनुच्छेद की वापसी की बात करना कश्मीर की जनता को झूठे सपने दिखाने के अलावा और कुछ नहीं। इसका पता नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला के इस बयान से भी चलता है कि बहुत कम राजनीतिक दलों ने अनुच्छेद 370 की बहाली की उनकी मांग का समर्थन किया है। ऐसा इसीलिए है, क्योंकि कहीं न कहीं अन्य दल भी यह समझ रहे हैं कि अब इस अनुच्छेद को वापस संविधान का हिस्सा नहीं बनाया जा सकता।

अनुच्छेद-370 को हटाए जाने का विरोध करने वाले कई दलों ने इस विषय पर या तो मौन धारण कर लिया या फिर इस तर्क तक सीमित हो गए हैं उनकी आपत्ति इस अनुच्छेद को हटाने पर नहीं, बल्कि हटाए जाने की प्रक्रिया पर है। यह सही है कि अनुच्छेद-370 को हटाए जाने का मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विचाराधीन है, लेकिन इसके आसार कम ही हैं कि वह उसकी बहाली के पक्ष में निर्णय दे सकता है।

इसका कारण केवल यह नहीं है कि अनुच्छेद-370 संविधान में एक अस्थायी अनुच्छेद के रूप में दर्ज था, बल्कि यह भी है कि वह जम्मू-कश्मीर के दलितों, जनजातियों और गुलाम कश्मीर से जान बचाकर आए शरणार्थियों से न केवल भेदभाव करता था, बल्कि उनके अधिकारों पर कुठाराघात भी करता था। इसके अतिरिक्त वह एक देश, दो विधान का पर्याय भी बना हुआ था।

यह भी एक सच्चाई है कि अनुच्छेद-370 उस अलगाववाद का पोषक भी था जिसने बाद में आतंकवाद को भड़काने का काम किया। नि:संदेह इसमें कोई हर्ज नहीं कि जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दल पूर्ण राज्य के दर्जे को बहाल करने की मांग करें, क्योंकि केंद्र सरकार भी यह कह चुकी है कि वह अनुकूल माहौल बनने पर जम्मू-कश्मीर के राज्य के दर्जे को बहाल कर देगी। उचित यह होगा कि जम्मू-कश्मीर के दल अनुकूल वातावरण निर्मित करने में सहायक बनें और यह ध्यान रखें कि ऐसे वातावरण का निर्धारण जिन कुछ बातों से होगा उनमें से एक कश्मीरी हिंदुओं की अपने घरों में वापसी भी है।